पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६७

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५० - -- - htnindmental .......... भक्तमाल सटीक । कि जैसे दरिद्री को धन का मिलनासुख देता है। हाँ, इतनी बात तो अवश्य है कि यदि सारांश तत्व का ज्ञान होवे, तब सुख की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार से टेढ़ापन रूपी दोष भी वालों (केशों) के सम्बन्ध में सुखद गुणही होता है, वैसेही मीन वाराह आदि तिर्यक शरीर भी भगवत् की प्रभुता के सम्बन्ध से अति सुखदायी ही हैं। __ "सबही अवतारों को भावपूर्वक पूर्ण मानना" श्रीअनदेव स्वामीजी की ऐसी जो मनभावती रीति सो मेरे हृदय में मनोहर हार के सरिस बसै ॥ प्रेम एक ऐसा अनुपम और अनोखा पदार्थ है कि वह जाति पाँति का कदापि विचार न करके तड़ितवद जिसपर पड़ता है लोक परलोक के झगड़ों से उसको छुड़ा ही के बोड़ता है । जोकि इस ग्रन्थ में जगदुद्धा- रक निषाद श्वपचादि महानुभावों के विमल पवित्र चरित, कि जिनको देख सुनकर कर्मकाण्ड के बड़े २ अभिमानी नाक सिकोड़ते और दौतों तले उगली दवाते चले पाए हैं, वर्णन किए हैं, इसीसे प्रन्यकर्ता ने भूभार उतारनेवाले और भक्तों के सुख देनेहारे भगवत के भी शूकरादि विलक्षण स्वरूपों की वन्दनारूपी मंगलाचरण पहिले किया है ।। जी में आया था कि चौबीसों अवतारों की संक्षेप लीलाएँ भी यहाँ लिख दूँ, परन्तु विस्तार के भय से छोड़ दिया, न बढ़ाया । (२०) छप्पय ( ८२३ ) चरण चिह्न रघुवीर के,संतन सदा सहायका ॥अंकुश, अंबर, कुलिश, कमल, जवे, धुजो, धेनुपदं । शंख, चक्र, स्वस्तीके, जंबुफले, कलस,सुधाहदें। अर्द्धचन्द्र, षटकोन, मीन, बिहुँ, ऊरधरेखा । अष्टकोन, त्रैकोन, इन्द्रधनु, पुरुष- विशेखों॥सीतापति पद नित बसत, एते मंगल दायका। चरण चिह्न रघुवीर के,संतन सदा सहायका॥६॥ (२०८) तिलक। चौबीसों अवतारों का मङ्गलाचरण करके, स्वामी श्रीनाभाजी महाराज अब, साकेतपति श्रीअवधीवहारी निज प्रभु श्रीसीतापति रघुबीरजी के