पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६६

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । ४९ Mumta. Mann mart+0000.0 mamaarb44+ Banna- द्वापर कृत कृत कृत १४ ब्रह्मलोक कृत विठूर कृत कृत कृत कृत समुद्र IWAN कृत २३ गिन्ती| अवतारों के नाम युग देश व्यास पृथ श्रीअयोध्या हरि त्रिकटाचल हंस मन्वन्तर* बिठूर यज्ञ (उरुकुरुम कुरुम) कृत बद्री ध्रुववरदेन हयग्रीव कामरूप ऋषभदेव श्रीअयोध्या धन्वन्तर नरनारायण कृत बद्रिकाश्रम दत्तात्रेय चित्रकूट कपिलदेव कृत ! बिन्दसर के समीप २४ सनकादि। । कृत । ब्रह्मलोक (१९) टीका । कवित्त । (८२४) जिते अवतार, सुखसागर न पारावार, करें विस्तार लीला जीवन उधार कौं । जाही रूप माँझ मन लागे जाको, पागै ताही; जागै हिय भाव वही, पावै कौन पार कौं। सब ही हैं नित्त, ध्यान करत प्रकाशैं चित्त, जैसे रंक पावें वित्त, जोपे जाने सार कौं । केशनि कुटिलताई ऐसे मीन सुखदाई, अगर सुरीति बाई, बसौ उर हारकौं ॥ १४ ॥ (६१५) तिलक । भगवत् के जितने अवतार हैं, वे सवही सुखके समुद्र हैं, जिनका वार- पार (ओरछोर) कौन पासकता है, प्रत्येक की लीला का विस्तारपसार, जीवों के ही उद्धार के निमित्त है। जिस भक्त का, जिस अवतार के रूप नाम लीला धाम में मन लगे, और उसमें वह रंगे पगै, उसके हृदय में वही भाव ऐसा जाग उठता है (प्रकाशमान होता है) कि कहाँ तक उसकी प्रशंसा की जाय, उसका अन्त नहीं । सपही अवतार नित्य हैं, सबही ध्यान करने से चित्त को प्रकाशकारक, और सवही ऐसे सुखद हैं