पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६७१

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MomeROMANIMirronda r ६५२ श्रीभक्तमाल सटीक । (१३५) श्रीगोविन्दस्वामीजी। (५१२) टीका । कवित्त । (३३१) गोवर्द्धननाथ साथ खेले, सदा भेलें रंग अंग, सख्य भाव हिये, गोविंद सुनाम है । स्वामी करि ख्यात, ताकी बात सुनि लीजै नीके, सुने सरसात नैन, रीति अभिराम है ।। खेलत हो लाल संग, गयो लौट दाव लैक, मारी लैचि गिल्ली देखि मन्दिर मैं स्याम है । मानि अपराध साधु धक्का दै निकारि दियो, मति सो अगाध, केसे जाने वह वाम है ।। ४१०॥ (२१६) वात्तिक तिलक । श्रीविठ्ठल गुसाईं के शिष्य श्रीगोविन्दस्वामी नाम से विख्यात हृदय में सदा सख्य भाव रखकर, “श्रीगोवर्द्धननाथजी" से अंग से अंग मिलाय रंग झेलने और साथ खेलने हारे, अभिराम रीतिवाले की बात भलीभाँति सुनिये, कि जिसको सुनकर नेत्र प्रेम से सजल सरस हो जाते हैं। आपको बाल्यावस्था ही से श्रीकृष्णचन्द्रजी प्रगट होकर दर्शन देते वरंच साथ खेला करते थे। एक दिन नन्दलालजी के साथ गुल्ली दंडा खेलते थे। प्रथम प्रभु का दाव था सो गोविन्द सखा को बहुत दौड़ाया, जब इनका दाव आया, तब नन्दलाल भगे, ये पीछे दौड़े। श्यामसुन्दर को मन्दिर में देख, बैंच कर गुल्ली मारी । मन्दिर में एक साधु पुजारी थे, सो उन्होंने इनका बड़ा अपराध मान इनको धक्का देकर निकाल दिया । क्योंकि सख्य रस भरी अगाध मति को, वह प्रेम से विमुख, कैसे जान सकता? आप भारी गवैये और महान कवि थे, अष्ट छाप में इनकी गिनती थी। इनकी “कदम्बखण्डी" नाम उपवन अब तक गोवर्द्धनजी के पास विद्यमान है। (५१३) टीका । कवित्त । (३३०) बैठयो कुंड तीर जाय, निकसैगो आय, बन दिये हैं लगाय, ताको फल भुगताइये । लाल हिय सोच पखौ, कैसे भखो जात, वह