पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६७०

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भक्तिसुधास्वाद तिलक। +admi- + Na+ H aridas उदार ॥ विद्यापति, ब्रह्मदास, बहोरनं, चतुरबिहारी । गोविंद, गंगा, रामलाल, बरसानियाँ मंगलकारी। प्रियदयाल, परसराम, भक्त भाई, खाटीको । “नन्द- सुचन" की छाप कबित केसो” को नीको। आस- करने, पूरने पति, भीष, जनदयाले, गुन नहिल- पार।हरि सुजस प्रचुर कर जगत मैं, ये कविजन अति- सय उदार ।। १०२॥ (११२) वात्तिक तिलक । श्रीहरि का सुजस जगत् में प्रचार करनेवाले ये सब कविजन अति- प्रय उदार हुए, नाम---- विद्यापतिजी, ब्रह्मदासजी, बहोरनकविजी, बड़े चतुर बिहारी कविजी, श्रीगोविन्दसखाजी, गंगारामकविजी, वरसानियाँ श्रीराम- लालजी, मंगलमय, हरिचरित्र गानकर इन्होंने जीवों को मंगलमय कर दिया, प्रियदयालजी, परसरामजी, भक्त भाईजी, खाटीकजी, जिन्हों "नन्दसुवन" की छाप पड़ी है ऐसे कवित्त श्रीकेशवजी के अच्छे हुए । आसकरनजी राजा, पूरनजी राजा, भीषमजी, जन दयालजी, ये सब अपार गुणों से युक्त हुए। १ श्रीविद्यापतिजी २ श्रीब्रह्मदासजी ३ श्रीबहोरनजी ४ श्रीविहारीजी ५ श्रीगोविन्दस्वामीजी ६ श्रीगंगारामजी ७ श्रीरामलालजी ८ श्रीप्रियदयालजी ६ श्रीपरशुरामजी १० श्रीभक्तभाईजी ११ श्रीखाटिकजी १२ श्रीकेशवनी १३ श्रीप्रासकरनजी १४ श्रीपूरनजी १५ श्रीभीष्मजी १६ श्रीजनदयालजी