पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७०

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mantre AJAROM-BARMERHMAMA- AMRAPEDImaHAPPMAMRPRIMHARNER -Muanthan- भक्तिसुधास्वाद तिलका। चरणपङ्कजों में के सुखदायक सहायक पापहारी जन उद्धारकारी बाईस चिह्नों का मङ्गलाचरण करते हैं। __श्रीजानकी जीवन रघुवीरजी के पदकंज में "अंकुश" प्रमुख (अड़ता- लीस) चिह्न सदैव विराजते हैं, परम मङ्गल के देनेवाले तथा संतों की विशेष सहायता करनेवाले हैं। "महारामायण,” "तपस्वीभाष्य”, प्रमुख की मति से श्रीचरणचिह्न तो वस्तुतः ४८ (अड़तालीस) हैं, (चौवीस) दक्षिण पदपंकज में और २४ (चौबीस) वामचरणसरोज में ॥ ' श्रीअगस्त्यमुनीश्वरकृत "श्रीरघुनाथचरणचिह्नस्तोत्र" में ४८ में से केवल १८ (अठारह) ही रेखाओं का वर्णन है अर्थात् (१) अम्बुज (२) अंकुश (३) यव (४) ध्वज (५) चक्र (६)अध्वरेखा (७) स्वस्तिक (८) श्रष्टकोण (६) पवि (१०)विन्दु (११) त्रिकोण (१२) धनु (१३) अंकुश वा अम्बर अर्थात् बन्न (१४) मत्स्य (१५) शंख (१६) चन्द्रार्द्ध (१७) गोष्पद और (१८) घट॥ ऐसे ही, श्रीकिशोरीजी की एक कृपाश्रिता ने केवल : (नव) ही रखाओं की वन्दना की है (सोरठा) "वन्दी सियपद" (१) रेख, (२) श्रीलक्ष्मी, अरु (३) श्रीसरयू । (४) शक्ति (५) सुपुरुष विशेष, (६) स्वस्तिक (७)शर (८) धनु (6) चन्द्रिका ।। एवं, श्रीयामुनाचार्य महाराजजी ने "पालवन्दार स्तोत्र" में इन अड़तालीस में से केवल सातही चिह्न चुन के लिखे (१) दर (२) चक्र (३) कल्पवृक्ष (४) ध्वजा (५) कमल (६) अंकुश भोर (७) वज्र ॥ ___ गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी ने तो अति कल्याणदायक केवल चार- ही चिह्न लिखे, अर्थात् (१) ध्वज (२) कुलिश (३) अंकुश (१) कमल॥ (कवित्त) “ध्यावहीं मुनीन्द्र राम पदकंजचिकराज, सन्तन सहायक समङ्गल सन्दोहहीं ऊर्दवरखास्वस्तिक, रुघष्टकोण,लक्ष्मी, हल, मूसल, औ शेष, शर,जन जिय जोहहीं। अम्बर, कमल,स्थ, वज्र, जव, कल्पतरु, अंकुश, ध्वजा, मुकुट, मुनि, मन मोहहीं । चक्र जू सिंहासना यमदण्ड, च मर भी छत्र नर,जयमाल दहिने पद सोहहीं ॥१॥"