पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७१७

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श्रीभक्तमाल सटीक । की ॥ भक्ति तेज अति भाल संत मंडलको मंडन। बुधि प्रवेश मागौत*ग्रन्थ संशय को खंडन ॥ नर- हड़ ग्राम निवास देस बागड़ निस्ताखौ । नवधा भजन प्रबोध अनन्य दासन ब्रत धायौ ॥ भक्त कृपा बांछी सदा पदरज राधा लाल की । संसार सकल ब्यापक भई, जकरी जन गोपाल की ॥१११॥ (१०३) वात्तिक तिलक । श्रीजनगोपालजी की बनाई हुई प्रभु यशमई “जकरी" जगत् भर में व्याप्त हो गई। आपका भाल (ललाट) भक्ति तेज से प्रकाश- मान, सन्तों के मंडल का मंडन करता था, अापकी बुद्धि सब संशयों की खंडन करनेवाली श्रीमद्भागवत ग्रन्थ में अतिशय प्रविष्ट हुई। नरहड़ नाम के ग्राम में निवास कर भक्ति उपदेश से उस बागड़ देश भर को निस्तार किया। नवधा भक्ति के सहित प्रबोध युक्त अनन्य भगवत्दासता का व्रत धारण किया, और श्रीहरिभक्तों के कृपा की तथा श्रीराधाकृष्णजी के चरणों की रज की वांछा सदा रखते थे। ऐसे श्रीजनगोपालजी की "जकरी" सारे जगत् में फैल गई। (१४६) श्रीमाधवदासजी। ( ५६७ ) छप्पय । ( २७६ ) माधौ दृढ़ महि ऊपरें, प्रचुर करी लोटा भगति ॥ प्रसिद्ध प्रेम की बात, "गढ़ागढ़" परचौ दीयौ। ऊँचतें भयौ पात श्याम साँचौ पन कीयौ ॥ सुत नाती पनि सदृश चलत ऊही परिपाटी। भक्तनि सों अतिप्रेम नेम नहिं किहुँ अंग घाटी ॥ नृत्य करत नहिं तन सँभार, "भागौत"-भागवत। १जकरी-एक छद विशेष का नाम ।