पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७१८

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4 - - - - - ++ + + 4 anupra phe -- -- mar mandat o r मन भक्तिसुधास्वाद तिलक । समसर जनकन की सकति । माधौ दृढ़ महि ऊपरें, प्रचुर करी लोटा भगति ।। ११२॥ (१०२) ___ वात्तिक तिलक । श्रीमाधवभक्तजी ने अति प्रेम से भूमि के ऊपर लोटने की भक्ति को दृढ़ता से विख्यात किया (फैलाया)। आपने "गदागढ़ में परचौ दिया, बहुत ही ऊँचे से गिरे और श्रीश्यामसुन्दरजी ने रक्षा कर आपका प्रण पूरा किया। आपके पुत्र नाती भी उसी परिपाटी से प्रेमपथ में चले, और भगवद्भक्तों से सकुटुम्ब आपका प्रम नेम पूरा था किसी अंग में घट नहीं था। श्रीहरिगुन गानकर नाचने लगते तब शरीर का कुछ सँभार नहीं रहता था, और गृहस्थाश्रम में इसप्रकार रहे कि जैसे श्रीजनकवंशी जल कमल-पत्रवत् संसार से निर्लेप रहते थे।आप "गढ़ागढ़" के रहनेवाले थे। (५६८) टीका । कवित्त । (२७५) गढ़ागढ़ पुर नाम “पाधौ” बढ़ि प्रेमि, भूमि खोर्दै, जब नृत्य करें, भूलै सुधि अंग की। भूपति बिमुख, झूठ जानिक परीक्षा लई, अनि तीन छाति पर देखी गति रंग की ॥ नूपुरनि बाँधि, नाचि, साँच सो दिखाय दियौ, गिलो हूँ कराह मध्य, जियो मति पंग की। बड़ो त्रास भयो नृप, दास विसवास बढ्यो, बढ्यो उर भाव, रीति न्यारी या प्रसंग की॥ ४५६॥ (१७३) वातिक तिलक । गढ़ागढ़ नाम नगर में "माधव" भक्त चढ़ बढ़ के प्रेमी हुए, नृत्य करते करते आपको अपने सब अंग की सुधि भूलि जाती थी तब भूमि में लोटने लगते थे । वहाँ का राजा विमुख था, उसने जाना कि "झूठ ही पाखंड करते हैं," इससे परीक्षा लेने के अर्थ १ श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभुजी के समसामयिक श्रीजगन्नाथपुरी बाले विख्यात प्रथम श्रीमाधवदासजी के अतिरिक्त ये दूसरे थीमाधवभक्तजी लोटनभक्ति फैलाने वाले, तया तीसरे एक थीमाधवग्वालजी साघुसेवी परम भागवत हुए। एक चौथे माधवजी सुकवि "बरसाने" वाले हुए।