पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७२९

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- - + N itun ७१० श्रीभक्तमाल सटीक । कहा कि “एक भगवदास आये हैं ऐसा जा सुनाइये।" लोगों ने कहा "आपके लिये डेउढ़ी नहीं, आप निःशंक जाके श्रीगोविन्द के गुण गाइये।" वह गृह में गया, श्रीचतुर्भुजजी ने भक्तवेप देख वैसी ही पूजा की। परंतु उस भाट के मन वचन में भक्ति प्रसंग के रंग का लेश भी नहीं पाया, सो राजा ने श्रीहरिकृपा से समझ लिया कि "किप्ती ने मेरी परीक्षा लेने के लिए भेजा है। राजा ने अपना द्रव्यागार (भंडार) खोल दिया, भाट ने मनमानी सम्पत्ति ली। तब, श्रीचतुर्भुजजी ने एक कौड़ी स्वर्णसूत्र के पट में लपेट, एक उत्तम सम्पुट में रख, पीछे से यह भी भाट को दे दिया। (५८२) टीका | कवित्त । (२६१) आयो वाही राजा पास, समा मैं प्रकाश कियो, लियो धन दियौ, पाछे सोई ले दिखायौ है । खोलि के लपेटा मध्य संपुट निहारि कौड़ी, समुझि विचार हारे मन मैं न आयौ है । बडो भागवत विम पंडित प्रवीन महा, निसि रस लीन जानि मायके वतायौ है । कसौ उनमानि, भक्त मानिबौ प्रधान जरी मंदिकै पठाई, ताहि गुण सम- झायो है ॥४६॥ (१६१) वात्तिक तिलक । वह अपने राजा के पास श्रा, सब वृत्तांत सादर सुना, जो धन लाया था सो और पीछे जो राजा ने डब्बा दिया सो भी, उस भाट ने आगे रख दिया । राजा ने सम्पुट खोला तो उसमें गोटे से लपेटी एक कौड़ी देखी! लाख प्रकार से विचार के हार गया परंतु उसका तात्पर्य इसकी समझ में नहीं हो पाया। तब उसने अपने उन ब्राह्मण पंडितजी बड़े भागवत महाप्रवीन हरिरस लीन से रात्रि में इसका गूढार्थ तथा तात्पर्य पूछा । सब वृत्तान्त सुन कानी कौड़ी आदिक देख, तात्पर्य को समझ विचारकर, प्रसन्न हो विन भागवतजी ने गजा से, अज्ञान अंधकार में लीन जानके, बताया कि "देखिये ! श्रीचतुर्भुजजी ने ऐसा अनुमान किया है कि यह फूटी कौड़ी सरीखा भक्तिगुणहीन मनुष्य बहुमूल्य स्वर्णपट संपुट सरीखे