पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७३१

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MAH ७१२ श्रीभक्तमाल सटीक । पैन पाऊँ पार," सार सुनि भक्ति, प्राय सीस पाँव घारे हैं । "राखौ यह खग, पगि रह्यो तन मन श्याम," अति अभिराम रीति मिले औ पधारे हैं ।। ४७० ॥ (१५६) वात्तिक तिलक । श्रीभक्त पंडितजी उस सारिका को लेकर राजा की सभा में आये, वहाँ लोग अनेक सांसारिक वार्ता करते थे, सो सुन, वह मैना बोली "श्रीरामकृष्ण गोविन्द हरे कह, (जिससे संसारसागर पार हो, और वार्ता करने से यमयातना के भागी होगे)-" राजा ने पंडितजी से पूछा कि "चतुर्भुजजी के प्रेम भाव की वार्ता कहिये।" पंडितजी ने उत्तर दिया कि "आपको इसका पूछना ही क्या है ? इसी मैना के उपदेश से तो सब कुछ जान जाइये कि यह चिड़िया (पक्षी) उस समाज में रहती है, जब इसको श्रीहरि ही प्राणप्रिय हैं, तब उन राजा की क्या कहूँ ? मैं कोटिन रसना से भी यदि उनकी भक्ति का बखान करूँ, तो भी पार नहीं पा सकता।" इस प्रकार प्रेम सारांश भक्तियुक्त वार्ता सुन स्वयं श्रीचतुर्भुजजी के यहाँ अाकर राजा ने चरणों में प्रणाम किया, और वह सारिका देकर कहा "इस खग को प्रापही रखिये यह तन मन से श्यामसुन्दर में पग रही है।" अति अभिराम रीति से कुछ दिन श्रीचतुर्भुजजी का संग कर फिर मिल मिलाके आपने गृह आकर भगवद्भक्ति में तत्पर हो वह राजा भी कृतार्थ हुआ। (१४६) श्रीमीराबाईजी *। (५८५) छप्पय । (२५८) लोक लाज कुल-शृंखला तजि "मीरा" गिरिधर

  • १ श्रीमीराबाईजी की जीवनी श्रीरुपकलाजी की लिखी हुई खड्गविलास प्रेस में सचिन

छपी है, जिसकी व्यवछावर ।।-) है। २श्रीमीराजी, श्रीरूपजी, श्रीसनातनजी, श्रीजीवगुसाईजी, प्रभृति सवत् १६११ से सक्त १६६२ के मध्य में अर्थात अकबर बादशाह के समय में थे। ३ एक कवि ने सवत् १५७० में उनका विराजमान रहना लिखा है । कोई १६३० और कोई १६४५ मे उनका परमघाम जाना बताते है, कोई महाप्रभु श्रीकृष्णचैतन्यजी के समय मे बतात है। इसी प्रकार उनके समय में बहुत मतभेद है।