पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७४

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+ -- - - भक्तिसुधास्वाद तिलक। अड़तालिसोंचिह्नों में से २४ चौबीस चिह्न दोनों चरणकमलों में विराजमान हैं। और, जो २४ रेखाएँ श्रीजनककिशोरी महारानी जी के वाम पदकंज में हैं, सोई २४ चिह्न श्रीमाणवल्लभजी के दक्षिण परप- सरोज में हैं। तथा जो २४ रेखा स्वामिनी श्रीजनकलली महारानीजी के बाएँ चरणारविंद में हैं, सोई २४ चिह्न श्रीमाणप्रियतम के दाहिने पद- पन में हैं। यह मनस्थ रखना चाहिए। दुःखहारी रेखाएँ सुखकारी रेखाएं १अष्टकोण १ऊ रेखा १६ पृथ्वी २हल २ स्वस्तिक १७ घट ३ मूसल ३ महालक्ष्मी १८ जम्दुफल ४ अम्बर ४ शेष १९ जीव ५ कुलिश ५शर २० बिन्दु ६ यव * ६ कज २१ शक्ति ७ अकुश ७ स्यन्दन २२ सुधाहद ८ ध्वजा ८ कल्पवृक्ष २३ त्रिबली ९ मुकुट २४ मत्स्य १० यमदण्ड १० सिहासन २५ पूर्णशशि ११ गोपद ११ चामर २६ वीणा १२ पताका १२ छन २७ निषग १३ अर्द्धचन्द्र १३ पुरुष २८ हंस १४ दर १४ जयमाल २९ चन्द्रिका १५ षट्कोण १५ सरयू

  • यव

१६ त्रिकोण

  • अष्टकोण
  • अर्द्धचन्द्र

१७ गदा ४८ मे १९ दुःखहारी है और २९ सुखकारी। १८ वंशी अष्टकोण, यव, और अर्द्धचन्द्र येतीन दु.खहारी १९ धनुष ___ भी है और सुखकारी भी। करुणासिन्धु श्रीनाभाजी महाराज ने ४८ में से विशेष सहायक २२ (वाईस) चिह्नों का ही मंगलाचरण किया है, जिनमें से ११ ' (ग्यारह) प्रत्येक पद के हैं ॥ अर्थात् (१) अंकुश (२) अम्बर , (३) कुलिश (४) कमल (५) जव (६) ध्वजा (७) चक्र । (८) स्वस्तिक (8) ऊर्ध्वरेखा (१०) अष्टकोण (११) पुरुष । । ये ग्यारह दाहिने पद के, और (१) गोपद (२) शंख (३) जम्बु-

फल (४) कलश (५) सुधाकुण्ड (६) अर्द्धचन्द्र (७) षट्कोण

९चक्र