पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७५

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H-12 - H - L e ar -- - ++ ++++ श्रीभक्तमाल सटीक । (८) मीन (६) बिन्दु (१०) त्रिकोण (११) इन्द्रधनुष ये ग्यारह बाएं चरणकंज के। (२१) टीका । कवित्त । (५२२) सन्तनि सहाय काज, धारे राम नृपराज चरणसरोजन में चिह्न सुखदाइये । मनही मतंग मतबारो हाथ आवै नाहि, ताके लिये “अंकुश" लै धाखो, हिये ध्याइये ॥ सठता सतावै शीत, ताही तें “अम्बर" धस्यो हलो जन शोक ध्यान कीन्हे सुखपाइये। ऐसे ही "कुलिश" पाप पर्वत के फोरिबे को भक्तिनिधि जोरिबे को "कंज"मनल्याइये ॥१५॥(६१४) तिलक । सन्तों की सहायता के अर्थनृपराज महाराज श्रीरामचन्द्र कृपा-सिन्धजी ने अपने पदकमलों में भक्तों के सुखदाई चिह्नन्दधारण किये हैं। मनरूपी मतवाला गजेन्द्र अपने वश में नहीं होता है, इसीलिये प्रभु ने "अंकुश" चिह्न निज चरणपंकज में धारण किया, कि भक्तजन निज मनरूपी मत्त हस्ती को वश करने के निमित्त, उक्त चिह्न का ध्यान अपने हृदय में करके, इसकी सहायता से वश करलें। इससे "अंकुश" विह्न का ध्यान करना चाहिये ॥शठता (जड़ता ) रूपी शीत हरिजनों को दुःख देता है, इसीलिये "अम्बर" (वन) चिह्न को धरा, कि जिसमें इस चिह्न का ध्यान भक्तजनों के शोक को हरे, तथा प्रतिष्ठादि सुख प्राप्त हों। इसी प्रकार, पापरूपी पर्वत के फोड़ने के हेतु “वन" रेखा, और प्रेममय नवधा भक्तिरूपीनवों निधियों के जोड़ने के हेतु,सर्व निधीश्वरी श्रीलक्ष्मी- जी का वासस्थान कमल तिसका चिह्न धारण किया है। उक्त सहाय के हेतु दोनों चिह्न मन में लाके ध्यान करना चाहिये । (२२) टीका । कवित्त । (२१) "जव” हेतु सुनो सदा दाता सिद्धि विद्याही को, सुमति सुगति सुख सम्पति निवास है। जिनमें सभीत होत कलि की कुचाल देखि "ध्वजा"

  • इन पाच (१५ से १९ वे तक) कवित्तो को कोई कोई "क्षेपक बताते है, अस्तु ।।"

चौ० "जडता जाड़ विपम उर लागा । गयटन मज्जन पाब अभागा ।" (मानसरामचरित)