पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७५२

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HumtammHgRAMMAR भक्तिसुधास्वाद तिलक । ७३३ कँठ। निंदक जग अनिराय कहा महिमा जानेगौ भूसठ । विदित गांधर्वी ब्याह कियौ दुसकंत प्रमानै । भरत पुत्र मागीत सुमुख शुकदेव बखान ॥ और भूप कोउसकै, दृष्टिजाय नाहिन धरी । कलिजुग भक्ति कररी*कमाना"रामरैन" के रिजुकरी॥११६ ॥ (६५) वात्तिक तिलक । ___ कलियुग में किसी से न चढ़नेवाले कठोर धनुष (कमान)सरीखा अनुराग (भक्ति) को श्रीरामरयनजी ने सरलता से चढ़ा लिया. कभी जीर्ण न होनेवाला जो भगवद्धर्म सो आचरण किया, सब लोगों के हितकार करने में नीलकंठ (शिवजी) के समान श्रीरामभक्ति और लोक संपत्ति दोनों देनेवाले थे । और जगत् में दुर्मतिवाला निंदक भूसठ (कुत्ता) आपकी महिमा को कैसे जान सकता है ? आपने लीलास्वरूप श्रीकृष्णचन्द्र से अपनी कन्या का गांधर्व विवाह इस प्रकार कर दिया कि जेसे दुष्यंत राजा और शकुंतला का गांधर्व विवाह विदित भागवत में प्रमाण है। जिन दोनों से भरत नाम का पुत्र हुआ सो भागवत में शुकदेवजी ने बखान किया है, मला इस करनी को कोई राजा कैसे छू सकता है वरंच दृष्टि से देख भी नहीं सकता इस प्रकार कठिन भक्ति, आपने सरलता से की ।। (६०८ ) टीका । कवित्त । ( २३५ ) पूनों में प्रकार भयो सरद समाज रास विविधि विलास नृत्य राग रंग भारी है । बैठे रस भीजे दोऊ, बोल्यौ राम राजा रीझि, भेंट कहा कीजे विष कही जोई प्यारी है ।। प्यार को विचारै न निहारै कहूँ नैकु छटा, सुता रूपघटा अनुरूप सेवा ज्यारी है। रही सभा सोचि, श्राप जाय के लिवाय ल्याये, भेष सों दिवाये फेरे, संपत ले वारी है ।। ४८६ ॥ (१४०) वात्तिक तिलक श्रापके लीलानुकरण निष्ठा भी बड़ी थी। आश्विन मास की

  • कररी-कड़ी। किमान=Jus=धनुप।