पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७५१

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+ - + -+- + - + - +- . ७३२....................श्रीभक्तमाल श्रीभक्तमाल सटीक । (१५३) राठौर श्रीखेमालरत्नजी। (६०६ ) छप्पय । ( २३७ ) खेमालरतन राठौर के अटल भक्ति आई सदन ॥ "रना” पर गुण राम भजन भागौत उजागर । प्रेमी परम "किशोर" उदर राजा रतनाकर। हरिदासनके दास, दसा ऊँची, ध्वज धारी। निर्भ,* अननि, उदार, रसिक, जस रसना भारी॥ दशधा संपति, संत बल,सदारहत प्रफुलित वदन । खेमालरतन राठौर के, अटल भक्ति आई सदन ॥११८ ॥ (६६) वात्तिक तिलक । क्षत्री राठौर श्रीखेमालरनजी के घर में, अटल (अचल) भगवद्भक्ति ने आके निवास किया । श्रीखमालरनजी के पुत्र रामरयनजी श्रीराम- गुणश्रवण और भजन में पगयण परम उजागर भागवत हुए । श्रीराम- स्यनजी के पुत्र "किशोरसिंहजी" परम प्रेमी ऐसे शुभ गुणयुक्त हृदय- वाले शोभित हुए कि मानों रत्नाकर (समुद्र) हैं । ये तीनों भक्त श्रीहरिदास संतों के परम दास और उत्तम दशावाले हुए। साधुसेवारूपी कीर्ति की ऊँची वजा गाड़के फहरा दिये, भक्तिमार्ग में निर्भय, अनन्य, और उदार होते श्रीरसिकराज प्रभु के यश रसना से अतिशय गान किये । संतों के बल से, दशधा कहिये प्रेमाभक्ति संपत्ति से युक्त, सदा सानन्द प्रफुल्लित मुख रहते थे। (१५४) राजा श्रीरामरयनजी। (६०७) छप्पय । (२३६) कलिजुग, भक्ति कररी कमान, "रामरैन” के रिजु करी ॥ अजर, धर्म आचरयौ, लोक हित मनौ नील निर्भय अनन्य ।।