पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

mara t ING 19gapna श्रीभक्तमाल सटीक। (१५६) राजकुमार श्रीकिशोरसिंहजी। __(६११) छप्पय । (२३२) अभिलाष उभै खेमाल का, ते किशोर पूरा किया। पाँयनि नूपुर बाँधि नृत्य नगधर हित नाच्यौ। राम कलस मन रली सीस तातें नहिं बाँच्यौ ॥ बानी बिमल उदार, भक्ति माहिमा बिसतारी। प्रेम पुंज मुठि सील बिनय संतनि रुचिकारी ॥ सृष्टि सराहै रामसुव, लघु बैस लछन आरज लिया। अभिलाष उभै खेमाल का, ते किशोर पूरा किया॥१२१॥ (६३) वात्तिक तिलक । श्री “खेमालरत्नजी" के शरीर त्याग समय दो अभिलाष थे, सो उन दोनों को आपके पौत्र (पोते) श्रीकिशोरजी ने पूर्ण किया । अपने चरणों में नूपुर बाँध, श्रीगिरिधरजी की प्रसन्नता हेतु नृत्य करते और श्रीरामजी के पूजन हेतु मन लगाके कलश में जल स्वयं लाया करते थे। एक दिन भी उस कलश से आपका सीस नहीं बचा, और छन्दबद्ध विमल वाणी से श्रीभक्ति की उदार महिमा विस्तारपूर्वक आपने गान किया। आप प्रेमपुंज, अतिशय शीलवान, विनय सम्पन्न थे, और सदा संतों की रुचि से चलते थे । सम्पूर्ण सृष्टि के लोग सराहते थे कि श्रीरामरयनजी के पुत्र ने थोड़ी ही अवस्था में श्रेष्ठ (सयाने) जनों के सब लक्षण धारण कर लिये और सदा उसका निर्वाह किया। दो० "निर्वाह्यो नीके सबै, सुन्दर भजन को नेम। मोह बाँड़ि अभिमान सब, भक्तन सों अतिप्रेम ॥ १॥"

  • नृत्य, नगधर (श्रीकृष्ण ) जी के हित, और कलश, श्रीरामजी के हित, कहने का

हेतु । ये राजा, पयहारी श्रीकृष्णदासजी, श्रीकोलदासजी, श्रीमग्रस्वामीजी के मिष्य श्रीरामोपासक थे, परन्तु वृन्दावन की समीपता से श्रीकृष्णजी मे भी अति प्रीति रखते थे।