पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७७७

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Home ami ++ M श्रीभक्तमाल सटीक। मेरी सिय स्वामिनी । यदपि हौं अधमा मलीन अघोघखानि, तदपि कहाउँ तेरी चेरी सिय स्वामिनी ॥ प्रभ? ते सरस क्षमादि शुभ गुणसिंधु, कीरति वदति श्रुति तेरी सिय स्वामिनी । ताहि बल शोच ऋत नाम ले उदर भरौं, निदरि गुणादि कृत फेरी सिय स्वामिनी ॥ करत अधिक छोह ताप आप पाणनाथ, जाप रंच तोर हग हेरी सिय स्वामिनी । ताते वार पार करजोरि माँगी दीन होइ, राखु निज चरणन नेरी सिय स्वामिनी ॥ द्रवत न कोशलकुमार तव नेह बिनु, करें क्यों न योग कर्म ढेरी सिय स्वामिनी जैहों नहिं दार ते निकारे हूँ पै दयानिधे, साँची गुनो कहत हौं देरी सिय स्वामिनी ॥जोन माया योगी सिद्ध ज्ञानी विधि शंभु हूँ लौं, निज बस माहिं किये जेरी सिय स्वामिनी । सोउ तव भृकुटी विलौकत रहति सदा, चाइति कटाक्ष कृपा केरी सिय स्वामिनी ॥ जनक कुमारी रघुवंशमणि प्राणप्यारी, अब जनि कीजै नेकु देरी सिय स्वामिनी ॥ "नेहलता" प्रीतम से दीजिये धरायकर, विगरी बनेगी एके बेरी सिय स्वामिनी॥ "रामलला नहछु त्यों विरागसंदीपिनी हूँ, बरवै बनाई विरमाई मति साई की । पारवती, जानकी के मंगल ललित गाय, रम्य रामधाज्ञा रची कामधेनु नाई की ॥ दोहा, औ कवित, गीतबंध, कृष्ण कथा कही, रामायन, विनै माह बात सब ठाई की । जग में सोहानी, जगदीश हूँ के मनमानी, संत सुखदानी, बानी तुलसी गोसाई की ॥ ३॥" लोगों ने छोटे बड़े सोलह ग्रंथ भी माने हैं, परंतु उन ग्रंथों में श्रीगोस्वामीजी की वर्ण अर्थ शैली नहीं पाई जाती ।। "जीवान्मन्दमतीन्सुभाग्यरहिताज्ञात्वा कलेदर्दोषत- स्तत्कल्याणपरायणः परकविः श्रीमन्महर्षिस्स्वयम् ॥ वाल्मीकिः कृपया सुहृत्सु तुलसीदासेति नाम्ना कला- वाविर्भूय चकारगमचरितभाषाप्रबन्धन वै ॥ १॥" क स्नेहलताजी (श्रीजानकीशरणजी ) श्रीअयोध्या हनुमनिवास भक्तमाली मानस उत्तर पक्षादि॥ कवित्त।