पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७७६

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e -Hreemetimemarik 40--- +A rIMMH- भक्तिसुधास्वाद तिलक। करने से ब्रह्महत्यादि अर्थात् ब्रह्महत्या, गोहत्या, बालहत्या, चाहत्या मद्यपान इन महापापों में परायण पुरुष भी उद्धार को प्राप्त हो जाते हैं । अब इस युग में श्रीसीताराम भक्तजनों को सुख देने के अर्थ फिर श्रीरामायणी ललित लीला भाषा काव्य निबंधविस्तार किया, सो उसके भी एक एक अक्षर महापापों से उद्धार करनेवाले और भक्तों को ब्रह्मानन्द देनेवाले हैं। आप स्वयं कैसे हैं कि श्रीसीतारामचरणकमलों के प्रेमरस से मत्त मधुव्रत (भँवर) की नाई अनन्य व्रत धारण किये दिन रात्रि श्रीरामनामयश रटते (गुंजार करते) हैं । अपार संसार- सागर से पार होने तथा कुटिल जीवों को पार करने के अर्थ सुगमरूप नौका, अर्थात परब्रह्म विभुज सीतापति शाङ्गधर साकेतविहारी श्याम- सुन्दर श्रीरामरूप तथा तन्नाम ("घोरभव नीरनिधि नाम निजनाव "), और तद्गुण लीला कथा ("भवसागर चह पार जो पाया। राम- कथाताकहँ दृढ़नावा") सुगमरूपी नौका लिया, ऐसे कलिकलुष विध्वं- सनाचार्य श्री १०८ तुलसीदासजी श्रीवाल्मीकि मुनि के अवतार हुए। कोई २ शंका करते हैं कि "श्रीवाल्मीकिजी ने मुक्त जीव होके क्यों जन्म लिया ?" इसका उत्तर, ईश्वर को तथा साकार मुक्त जीवों को ऐसी सामर्थ्य होती है कि पूर्वरूप से ज्यों के त्यों बने भी रहें और अपने सत्य संकल्प से रूपान्तर तथा अवतार भी धारण कर लेवें। देखिए, भगवान अपने परमधाम में विराजमान भी रहते हैं और मत्स्यादि अवतार भी धारण कर लेते हैं, ऐसे ही श्रीवाल्मीकिजी को भी जानिए । स्कन्धपुराण में लिखा है। ___ श्लोक “वाल्मीकिरभवब्रह्मा वाणी वाक्तस्य रूपिणी ॥" श्रीब्रह्माजी के अवतार श्रीवाल्मीकिजी हुए और सरस्वतीजी श्रापकी वास्य हुई। देखिए, श्रीब्रह्माजी भी बने थे और वाल्मीकिजी भी हुए ऐसे ही जानिए ॥ श्रीगोस्वामीजी ने भी अपना अवतार सूचित किया है (पद) “जन्म जन्म जानकीनाथ के गुनगन तुलसिदास गाए" । श्रीतुलसीदासजी के गान किए हुए प्रसिद्ध बारह ग्रंथ प्रमाण हैं। "सिय स्वामिनी" । तब पद पदुम विहाय ना भरोस मोहिं, जोहि जिय लीजै सुधि