पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

+-+- +- +-+ -matuanim Android ७६० श्रीभक्तमाल सटीक । दोनों लोक में सुख सुयश देनेवाली है। मेरे शरीर में ऐसी भीति की सो इसमें मांस रुधिर हाड़ चाम छोड़ क्या और कुछ भी है ?" दो० “काम वाम की प्रीति जग, नित नित होत पुरान। राम प्रीति नित ही नई वेद पुरान प्रमान ॥ १ ॥ लाज न लागत भापको, दौरे भायल साथ। धिक धिक ऐसी प्रीति को, कहा कहीं मैं ? नाथ!"॥ "अस्थि चरम मय देह मम, तामें जैसी प्रीति । तैसी जी श्रीराम महँ, होति,न तो भव भौति ॥३॥ स्त्री के मुख से श्रीरामप्रेरित ऐसे वचन सुनते ही आपके हृदय में मानो ज्ञानवैराग्यरूपी सूर्य उदय हो गये, प्रथम की दशा रात्रि के समान चली गई। आप उसी क्षण उस ठिकाने से चल दिये, स्त्री पीछे पश्चात्ताप करके कुछ प्रार्थना करने लगी, परन्तु आपने उसकी ओर देखा तक नहीं। यहाँ सज्जनों ने इतनी युक्त वार्ता और भी लिखी है कि श्रीतुलसी दासजी कई कोस चले आये, एक ठिकाने श्रीगंगाजी में जल पान करके सो रहे, तो स्वप्न में श्रीशिवजी ने श्रीरामषडक्षर मंत्रराज बताया, और कहा कि “यही मंत्र और श्रीरामनाम तुम जपो, तुमको श्रीराम- जी दर्शन देंगें।" आप जागे, उसी क्षण से श्रीरामनाम में अतिशय तत्पर हुए। इसी हेतु से श्रीशिवजी को गुरुदेव करके माने हैं (हित उपदेशक महेश मानौं गुरुकै) "बाहुक" में ॥ "मेरो माय बाप गुरु शंकर भवानिये" तदनन्तर श्री “वाराहक्षेत्र" में आकर श्रीरामानन्दीय म हात्मा श्रीनरहरिदासजी से श्रीराममंत्रादिक पंचसंस्कार ग्रहण + श्रीनरहरिदासजी की गुरुपरम्परा महात्माओ ने यो कही है:--- (१) श्री १०८ रामानन्द स्वामी (२) श्रीअनन्तानन्दजी (३) श्रीनरहरिदासजी (४) इन्ही श्रीनरहरिदासजी के शिष्य श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी है।। और गोस्वामी श्रीनाभाजी की परम्परा यो है.--- (१)श्री १०८ रामानन्द स्वामी (२) श्रीअनन्तानन्द (३) श्रीकृष्णदास पहारीजी (४) श्रीमग्रस्वामी (५) गोसाई श्रीनाभाजी महाराज । और पाठक यह जानते ही है कि दोनो ( गोसाई श्रीनामास्वामी तथा गोसाई श्रीतुलसीदासजी) एक ही समय मे थे, और परस्पर समागम था ।।