पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७८०

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MAHARONINNI - - -- - g anendent भक्तिसुधास्वाद तिलक । कर श्रीरामायणजी सुना। फिर आज्ञा लेकर वहाँ से श्रीकाशीजी आये, वहाँ निवास कर श्रीसीताराम प्रभुजी की मानसी तथा प्रत्यक्ष सेवा में तत्पर होकर दृढ़ भजन भावना में प्रारूढ़ हुये ॥ आपके नेत्र श्रीराम दर्शन रूप स्वातिविन्दु के लिये चातक के समान प्यासे रहते थे। अनन्त श्रीगोस्वामि तुलसीदासजी के जीवन चरित्र बहुत सज्जनों ने कई प्रकार से वर्णन किये हैं किसी २ ने आपको कान्यकुब्ज ब्राह्मण कहा है परन्तु विज्ञों ने सरयूपरि ब्राह्मण लिखा है । उसमें कोई सुकुल (“सुकुल जनम" कवितावली) गर्गगोत्री कोई पराशरगोत्री द्विवेदी पत्यौजा के लिखते हैं । "तुलसी पराशर गोत दुवे पतिौंजा के" ऐसा श्रीकाष्ठजिह्वा स्वामीजी ने लिखा है । अस्तु, ब्राह्मणवंश ही को आपने पवित्र किया यह निश्चय हुआ। जन्मस्थान भी लोग कई ठिकाने लिखते हैं, वांदा जिले में यमुना- तीर "राजापुर" को बहुत लोग कहते हैं परन्तु राजापुर श्रापका जन्म स्थान नहीं है । श्रीगोस्वामीजी का जन्म स्थान श्रीगंगा वाराह क्षेत्र (सोरौं ) के प्रान्त अन्तर्वेद में "तरी" नामक प्राम में वा “तारी" था। आपने “राजापुर” में विरक्त होने के पीछे निवास कर भजन किया है, इसी से वहाँ श्रीगोस्वामीजी की विराजमान की हुई संकष्टमोचन श्रीहनुमानजी की मूर्ति है । और श्रीरामायण अयोध्याकांड भी है। यह वार्ता वहाँ जाके भली प्रकार निश्चय की गई है। आपके जन्म का संवत् १५८६ का निश्चय होता है। पिता नाम श्रीवात्मारामजी और माता का श्रीहुलसीजी महानुभावों ने लिखा है। गोसाईजी ने अपना नाम "रामबोला” भी कवित्तरामायण में लिखा है "रामवोला नाम हौं गुलाम रामसाहि को”॥ - दो० "पढ़यौ गुरू ते वीच शर, सन्त वीच मन जान । गौरी शिव हनुमत कृपा, तव में रची "चिरान" ।।१।। "पुरान १८ पुरान चिरान" श्रीरामचरितमानस ! पुराणों की अपेक्षा अपनी रचना को चिरान कहा ( पुरानी वस्तु को पुराण चिरान कहते है । चिरान शब्द की जड़ "चिर" जानिये )