पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७९५

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INHanu m an-e -440mmaNaramrit+ma- manuar+- .. ७७६ ... ७७६ श्रीभक्तमाल सटीक । (१६४) श्रीगिरिधरजी। (६४१) छप्पय । (१९४) (श्री) बल्लभजू के बस में सुरतरुगिरिधर भ्राजमान॥ अर्थ धर्म काम मोक्ष भक्ति अनपायनि दाता। हस्तामल स्तुति ज्ञान सब ही सास्त्र को ज्ञाता॥ परिचर्या ब्रजराज कुँवर के मनकों करें। दरसन परम पुनीत सभा तन अमृत बर्षे ॥ बिट्टलेस नंदन सुभाव जग कोऊ नहिं ता समान। (श्री) बल्लभजू के बस में सुरतरु गिरिधर भ्राजमान॥ १३१॥(८३) वात्तिक तिलक । श्रीवल्लभाचार्यजी के वंश में, श्री “गिरिधर" जी कल्पवृक्ष के समान शोभा को प्राप्त हुए । अर्थ धर्म काम मोक्ष तथा अनपायनी भक्ति के देनेवाले हुए । श्रुति सम्भव बान आपको हस्तामलक था, तथा सब शास्त्रों के ज्ञाता थे। श्रापकी की हुई सेवा परिचर्या श्री- ब्रजराजकुमार कृष्णचन्द्रजी के मन को खींच लेती थी । अति पुनीत दर्शनयुत सभा में बैठ वचनामृत की वर्षा करते थे । श्री- विट्ठलेशनन्दनजी के सुभाव के समान जगत् में और किसी का सुभाव न हुथा।

  • (१६५) श्रीगुसाई गोकुलनाथजी।

(६५०) छप्पय । (१९३)

  • (श्री) बल्लभजू के बस में गुननिधि "गोकुलनाथ"
  • छापे की किसी पोथी में इस छप्पय के अनन्तर एक छप्पय और है कि जो पुरानी

किसी प्रति में नहीं पायी जाती । निश्चय होता है कि उस पुस्तक के छपानेवाले के पुरुष सोनी थे। "बिदृलवश कल्याण के शिष्य सोनि सद्गुण निकर इत्यादि ।।