पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७९४

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७७५ +new+ 4 4 -- Nument- भक्तिसुधास्वाद तिलक। (१६३) श्रीमानदासजी। (६४८ ) छप्पय । ( १९५ ) गोप्य केलि रघुनाथ की मानदास परगट करी ॥ करुणा बीर सिंगार आदि उज्ज्वल रस गायो। पर उपकारक, धीर कवित, कविजनमन भायो। कौसलेस पदकमल अनंनि दासत व्रत लीनौ । जानकीजीवन सुजस रहत निसि दिन रंग भीनौ। रामायन नाटक की रहसि उक्ति भाषा धरी। गोप्य केलि रघुनाथ की मानदास परगट करी॥ ॥१३०॥(८४) वात्तिक तिलक श्रीजानकीजीवन रघुनाथजी की गुप्त केलि (रहस्यलीला), श्रीमानदासजी ने काव्य द्वारा प्रगट की, उन लीलाओं में करुणारस, वीररस, उज्ज्वल शृङ्गाररस आदि, सवरस अति उज्ज्वलता से मान किये, और बड़े परोपकारी अति धीर हुए । आपका कवित्त कविजनों के मन में बहुत अच्छा लगता था । श्रीकोशलेश रामचन्द्रजी के चरणकमलों में अनन्य दासता का व्रत धारण किया। श्रीजानकीजीवनजी के सुयश अनुराग के रंग में दिन में दिन रात भीगे रहते थे। श्रीरामायणजी तथा श्रीहनुमन्नाटक आदिकों की सब रहस्य उक्तियाँ भाषा में वर्णन की। ऐसे श्रीमानदासजी हुए आपने भृङ्गाररस और माधुर्य बहुत ही उत्तम रीति से लिखा है। ' दो० "सी" कहते सुख ऊपजे, “ता" कहते तम नास। . तुलसी "सीता" जो कहै, राम न छाँडै पास ॥१॥

  • अननिबनन्य।