पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८००

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । H it NeparmanandParikrama --- वात्तिक तिलक । - - - - - श्रीबनवारीदास श्रीश्यामसुन्दरजी के अति रँगीले रसिक भक्त भजन पुंज थे। कविता और वार्ता करनी बड़ी चतुरता चोखाई और अति यथार्थता से जानते थे । सारासारविवेक में परमहंसों की नाई थे। सदाचार में तत्पर, संतोषी, सब प्राणियों के हितकारी, अमित श्रेष्ठ गुणों के निधान, और प्रेमामक्ति व्रत को धारण करनेवाले थे। उदार अन्तःकरण, प्रियदर्शन रुचिर पालाप करनेवाले, सुखधाम श्याम के थे॥आपके दर्शन से लोग पवित्र हो जाते थे। (श्लोक) "हे जिह्वे । रस-सारखे! मधुरं किंन भाषसे ? मधुरं वद कल्याणि, सर्वदा मधुरपिये"॥१॥ (१६७) श्रीनारायण मिश्रजी। (६५५) छप्पय । (१८८) भागौतमली विधि कथन कौ, धनि जननी एकै जन्यौ॥ नाम नारायण मिश्र, बंस नवला जु उजागर। भक्तन की प्रति भीर भक्ति दशधा को आगर ॥ आगम निगम पुरान सार शास्त्रनिसब देखे। सुरगुरु, शुक,सन- कादि, ब्यास, नारद, जु विसेखे ॥ सुधा बोध मुख सुरधुनी, जस बितान जग मै तन्यौ। भागौत भली बिधि कथन कौ,धनि जननी एकै जन्यौ ॥१३४॥ (८०) वात्तिक तिलक । उजागर नवलावंशविभूषण श्रीनारायण मिश्रजी की माता प्रभु या गान के 1 भागोत-श्रीभागवत ।।