पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८३७

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श्रीभक्तमाल सटीक । Aamitramanaamaanaamanarentertainmentaramananew ++ दीपक उदय, मेटि तम, वस्तु प्रकासै ॥ हरि को हिय बिस्वास नंदनंदन बल भारी । कृष्ण कलम सों नेम जगत जानै सिरधारी॥ (श्री) वर्द्धमान गुरु वचन रति, सो संग्रह नहिं छडयौ । कीरतन करत कर सुपनेहूँ, मथुरादास न मंडयौ ॥ १४४॥ (७०) वात्तिक तिलक । श्रीमथुरादासजी के भगवन्नाम कीर्तन स्मरण करते समय चेटकी का कर, (कर्तव्य, जादू, पाखण्ड), स्वपने में भी नहीं मंडित हुआ, अर्थात् प्रथम जो मंडित किये हुए था सो आपके जाने से रुक गया। पूर्वाचार्यों के सदाचार, संतोष, सावधानता, सुहृदयता, अतिशय शील श्रादिक गुण सुन्दर श्रापमें झलकते थे, और भगवत् विषय वस्तु तत्त्व का ज्ञान ऐसा था कि जैसे हाथ में दीपक लेने से गृह के सब वस्तु प्रकाशमान होते हैं। आपके हृदय में श्रीहरि नन्दनन्दनजी का विश्वास बल बड़ा भारी था । श्रीकृष्ण पूजा जल का कलश नित्य नियम से आप अपने मस्तक पर रखकर लाते थे, यह सब जगत् जानता है ॥ . अपने गुरु "श्रीवर्द्धमान" जी के वचनों में अतिशय प्रीति थी, उसका संग्रह जन्मभर आपने नहीं छोड़ा। (७०३) टीका । कवित्त । (१४०) बसकै “तिजारे" माँझ, भक्तिरस रास करी, करी एक बात, ताको प्रगट सुनाइयै । आयौ भेषधारी कोऊ करै सालग्राम सेवा, डोलत सिंहा- सन पै, पानि भीर छाइयै ॥ स्वामी के जु शिष्य भयौ, तिनहूँ के भाव देखि, वाही को प्रभाव प्राय कह्यो हिय भाइये । नेकु आप चलो, उह रीति को विलोकिये जु, बड़े सरवन कही "दूरी नहीं जाईयै” ॥ ५५६ ॥ (७०) वात्तिक तिलक। तिजारे ग्राम में निवास कर, रसराशि-भक्ति की भापने एक बात