पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८४७

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श्रीभक्तमाल सटीक । RAMMARHAMMAatsang ate...-ram- सवैया "जप, यज्ञ, सुदान, सुमान, करें, बहु कूप, रुवापी तड़ाग बनावें । करें व्रत, नेम, सुइन्द्रियनिग्रह, उग्रह योग समाधि लगावें ॥ कहै रसखानि, हृदय तिनके कबहूँ नहिं जो सुपने महँ भावे । ताहि अहीर की छोहरियाँबछिया भर छाँच पै नाच नचावै ॥ १॥ सो मुझे वे लोग, हे सुखसागर ! दूध कैसे लेने देंगी।" प्रभुने कहा "हमारी श्राज्ञा है, देंगी।" आपकी नवीन आज्ञा सुनकर मानली ॥ उस दिन से सबके घर घर जाके दूध लिया करते थे। व्रजवासियों से कह दिया कि "मुझे नन्दकुमार की आज्ञा है दो,” किसी किसी ने नहीं दिया उनको आपने परचो दिया जैसे उनका सम्पूर्ण दूध फट गया वा कीड़ा पड़ गया, एवमादि तब लोगों को प्रभु की आज्ञा की प्रतीति हुई, दूध देने लगे। कोई कोई हाँसी से दूध का पात्र छिपा देती थी, तव श्रीनागाजी स्वयं जाके ढूँढ लेते । तब सब बड़ा सुख मानती थीं इस प्रकार की रसमयी लीला पापने की ॥ ( ७१५ ) छप्पय । ( १२८ ) . माधुकरी मांगि सेवॆ भगत, तिनपर हौं बलिहार कियौ ॥ गोमा परमानन्द, प्रधान, द्वारिका, मथुरा खोरां । कालख सांगानेर भलौ भगवानको जोरा॥ वीठल ठोंड़े, खेमं पंडा गुनौरै गाजै । श्यामसेन के बंश, “चीधर" "पापा” रवि राजै ॥ जैतारने गोपाल के, केवल कूबै मोल लियौ । माधुकरी मांगि से भगत, तिनपर हौं बलिहार कियौ ॥ १४६ ॥ (६५) ___बात्तिक तिलक। जिन जिन महात्माओं ने माधुकरी मुट्ठी भिक्षा माँग कर हरि- भक्तों की सेवा की, उनके ऊपर मैं अपना तन मन धन सब बलिहारी करता हूँ॥