पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८४८

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A - - - भक्तिसुधास्वाद तिलक । ८२९ (१) गोमा में परमानन्दजी (८) सेन भक्त के वंश में (२) द्वारिका में प्रधान भक्तजी | श्यामदासजी। (३) मथुरा में खोरा भक्तजी (110)और चीधड़जी तथा श्री (४-५)कालख में और सांगानेर पीपाजी, दोनों संत- में भगवान का भला सेवी सूर्य के समान जोड़ा अर्थात् एक प्रकाशमान । भगवानजी कालख में (११/१२) जैतारनजी के और दूसरे भगवानजी गोपालजी के भी मैं सांगानेर में। बलिहारी जाता हूँ। ६) ठोंड़े में बीठलजी। (१३) श्रीकेवलदास कूबाजी ७) गुनौरे में खेम पंडा, भक्तों । ने अपने कूवरही से की सेवाकर सुख से गर्जते थे। मुझे मोल ले लिया। (१८४)श्रीकूबाजी (केवलदास) (७१६) टीका । कवित्त । (१२७) कहत कुम्हार, जगकुलनिसतार कियो, "केवल" सुनाम साधु सेवा अभिराम है । आये बहु संत, प्रीति करी लै अनंत, जाको अंत कौन पावै, ऐपै सीधी नहीं धाम है ॥ बड़ीए गरज, के चले करज निकासिवेकों, बनिया न देत, कुवाँ खोदी कीजै काम है। कही चोल कियौ तोल लियौ नीके रोलकरि, हित सो जिवाँये जिन्हें प्यारो एक श्याम है ॥ ५६७॥ (६२) वात्तिक तिलक । आपको सब जगत् कुम्हार जाति कहते हैं श्री “केवल" जी नाम था आपने अपने कुलभर बरन जगत् भर को भवसागर के पार उतार दिया, अति उत्तम रीति से साधुसेवा करते थे । एक दिवस बहुत से संत घर में आये, देख अति अनंत प्रीति की, परन्तु घर में अन्न सीधा कुछ नहीं । बड़ी चाहना से ऋण लेने को गये बनियों ने नहीं दिया, एक ने कही कि “जो मेरा कुत्रा खोद देने का वचन दो तो मैं ढूँ॥" "गरज"- आवश्यकीय चाह 1 1 "करज"= ऋण, उधार ।