पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८५८

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८३९ merodution-NAAMER+H- NRHMAM- 4 भक्तिसुधास्वाद तिलक । लगते, सब ठिकाने में हरिकथा बैठाकर मधुर वचन कह प्रसन्न करते, बहुत प्रकार से लाड़ लड़ाते थे। नीवाजी के चित्त में निर्दूषण प्रीति थी इससे अति सावधानता से संतों की सेवा करते थे। (१८७) श्रीतूंवर भगवान (भगवान तूंवरसेठ) (७२९) छप्पय । (११४) बसन बढ़े कुन्तीवधू, त्यौं “तँवर भगवान” के ॥ यह अचिरज भयौ एक, खांड घृत मैदा बरषै। रजत रुक्म की रेल मृष्ट सबही मन हरषै ॥ भोजन रास बिलास कृष्ण कीरतन कीनौ । भक्तनिको बहुमान दान सबही को दीनौ ॥ कीरति कीनी भीमसुत, सुनि भूपमनोरथ आनकै । बसन बढ़े कुन्तीवधू, त्यौं "तूंवर भगवान" कै॥१५४॥ (६०) वात्तिक तिलक। जैसे श्रीद्रौपदीजी के वस्त्र बढ़े थे, ऐसे ही "तूंवर" जाति के सेठ भक्त "श्रीभगवानदासजी” के अन्न द्रव्यादि सब उत्सव के पदार्थ प्रभुकृपा से बढ़े । यह एक आश्चर्य हुथा कि जो मित का पदार्थ रक्खा था सो खाँड घृत मैदा आदिक देते समय में इतना बढ़गया कि वर्षासी हुई । और सुवर्णरूप की मुद्रा भी रेलारेल दी गई। सम्पूर्ण सृष्टि के लोग देखके मन में हर्षित हुए। भोजन कराते समय भी सव पदार्थ बढ़े, फिर रामविलास श्रीकृष्णकीर्तन कराया और भगवद्भक्तों को बहुमान्य से सब पदार्थ अर्पण कर सबको दान दिया। भीमजी के पुत्र (श्रीभगवानदास) ने मथुरा में ऐसी कीर्ति की कि जिसको सुनकर राजा लोग मनोरथ करने लगे कि ऐसी करनी हम भी करैं परन्तु बनेगी नहीं। दो. “करत महोच्छव प्रेमभर, बहुविधि करत समाज । पटरस असनजिंवाय जन, देत वसन सिरताज "