पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८५७

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८३८ EntertainmMRIrimarNIMmmamtam श्रीभक्तमाल सटीक । और भगवद्भक्तों का अतिसम्मान से सत्कार होता था, विमुख कोई नहीं जाता था।"दीया जगत अनूप है, दिया करो सब कोय | घर को धखों न पाइरे, जो कर दिया न होय ॥" सभासमाज में चन्दन माला वीड़े मेवादिक और वस्त्र दिये जाते थे। फिर गुणीजन श्रीकृष्णकीर्तन यशगान की वर्षा करते थे, उस समय श्रीकान्हरजी प्रभु के भूपण उतार गुणीजनों को देकर मन में अति आनन्दित होते थे। श्रीविठ्ठलजी के परम विमल पुत्र श्रीकान्हरजी संतों के चरणों की रज शीश पर धारण करने के लिये प्रमुदित चारों ओर फिरते थे। (१८६) श्रीनीवाजी। (७२८) छप्पय । (११५). भक्तनि सों कलिजुग भलैं, निबाही "नीवा," खेत- सी॥आवहिं दास अनेक उठि सु आदर करिलीजै॥ चरण धोय दंडीत सदन में डेरा दीजै। ठौर ठौर हरि- कथा हुदै अति हरिजन भावें । मधुर बचन मुह * लाय बिबिधि भातिन्ह जु लड़ावै ॥ सावधान सेवा कर, निर्दूषन रति चेतसी ॥ भक्तनि सो कलिजुग भलें, निबाही "नीवा,"खेतसी ॥१५३॥ (६१) वात्तिक तिलक। कलियुग में श्रीनीवाजी ने भगवद्भक्तों से प्रीति रीति खेतसरीखी । भलेप्रकार निर्वाह किया, अर्थात् जैसे किसान किसी विघ्न से भी खेत की प्रीति नहीं छोड़ता ऐसे ही आपके गृह में अनेक भगवदास पाते | उन सबको उठकर अतिश्रादरपूर्वक आगे से ले दण्डवत प्रणामकार चरण धोके गृह में आसन कराते थे। श्रापको हरिभक्त बहुत ही प्यार "महु" पाठभेद। १ दो "हरिया हरिसो प्रीति कर, ज्यो किसान की रीति । खेत।। राम लगाबहु आपमे, ज्यो किसान मन दाम चौगुनो, ऋण धनो तक खेत सो प्रीति ।।१।। रामचरण सीतोष्ण सहि निसिदिन तहाँ सचेत ॥२॥"