पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९०२

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८५३ t + -famoung- + + + tutna wamrewarudut + + भक्तिसुधास्वाद तिलक। गोपाल, संकर लीला पारायन ॥ संतसेय कारज किया, तोषत स्याम सुजान को। भगवंत रचेमारी भगत, भक्तनि के सनमान को ॥ १७॥ (३६) वात्तिक तिलक। श्रीभगवन्त ने, अपने भक्तों के सम्मान के अर्थ, अपने इन भारी भक्तों को बनाया। जिन्होंने सन्तों की सेवा की और अपने कार्य से श्रीश्याम- सुजान को संतुष्ट किया है। (१) क्वाहव प्राम में श्रीरंगजी | (4) मारवाड़ में श्रीकल्यानजी सुन्दर मतिवाले मुदित सन्तसेवक (२) श्रीसदानन्दजी, अपना (६) परस में श्रीवंशीनारा- सर्वस्व त्याग करनेवाले। यणजी (३) श्रीलघुलंब प्राम में श्री- (७) चेता में गोपालजी ग्वाल श्यामदासजी अनन्य () भगवदलीला-परायण (४) श्रीलालेजी अनुरागी श्रीशङ्करजी (२१०) श्रीहरीदासजी। (७८२) छप्पय । (६१) तिलक दाम पर कामकों, “हरीदास” हरिनिर्मयो॥ सरनागत को "सिवर,” दान “दधीच," ट्रेक “बलि"। परम धर्म "प्रहलाद," सीस.देन “जगदेव” कलि॥ बीकावत बानैत भक्तपन धर्मधुरंधर । "तूंवर" कुल- दीपक्क, संतसेवा नित अनुसर ॥पारथपीठ* अचरज कौन, सकल जगत में जस लियो। तिलक दाम पर "पारथपीठ"=श्रीपारथ (अर्जुन) जी की पीढ़ी (वंश) में श्रीअर्जुनजी के पुत्र श्रीअमिमन्युजी, उनके श्रीपरीक्षितजी, सो परीक्षितजी की पीढ़ी (वंश) मे श्रीहरिदासजी थे। श्रीअर्जुनजी के समान कहें तो आश्चर्य ही क्या ? पाठान्तर कौन, कवन ।।