पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९०३

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८८४ anguanandamerademarathi H a + - - - श्रीभक्तमाल सटीक। काम कों, “हरीदास” हरि निर्मयो॥ १७६ ॥ (३५) वार्तिक तिलक । तिलक कंठी मालामात्र धारण करनेवाले वैष्णवों के भी कामना पूर्ति करने के लिये हरि ने श्रीहरीदासजी को निर्मान किया। श्रापके गुणगण अति अनुपम थे, शरणागत जन की रक्षा करने के लिये राजा शिवि के समान, दान देने में दधीचि के सरीखे, दान देकर सत्यता की टेक न छोड़ने में राजा बलि के सदृश, परम धर्म भगवद्भक्ति में प्रह्लाद- जी के सरिस थे और रीझ के सीस तक दे देने में कलियुग में जैसे जगदेव थे उसी प्रकार के थे। श्रीहरीदासजीबीकावत, भक्तपन काबाना धरनेवाले, धर्मधुरंधर, “तूंवर” कुल के दीपक, संतसेवा में नित्य तत्पर रहनेवाले थे (वंश का प्रभाव) “वीकावत बानत भक्तबंस पाण्डव अवतारी । कपि जो बीरा लियो उठाय सीस अम्बर का झारी ॥ यीठ परीक्षित (पारथ) सार का सभा साख सन्तन कही । टेक एक बंसी तनी, जन गोबिंद की निर्बही"॥ (७८३) टीका । कवित्त । (६०)। प्रह्लाद आदि भक्त गाए गुण भागवत सब इक ठौर आए देखे "हरिदास” मैं| "रीमि जगदेव," सौ यो कहिकै बखान कियो, जानत न कोऊ सुनो कखौं ले प्रकास मैं ॥ रहै एक नटी सक्तिरूप गुण जटी गावे लागै चटपटी मोह पावै मृदु हाँस मैं । राजा रिमवार करें देखें को विचार, पैन पावै सार काटै सास "राख्यो तेरे पास मैं"॥६०५॥ (२५) वात्तिक तिलक । श्रीपलादजी, शिवि, दधीचि, वलि इन भक्तों के गुण श्रीभागवतग्रंथ में प्रसिद्ध हैं, उन सवों के गुण इकट्ठे श्रीहरीदासजी में देखे गये ॥ . श्रीनाभास्वामीजी ने रीझ में जगदेवजी के समान बखान किया सो “जगदेव” की रीझ का वृत्तान्त (श्रीप्रियादासजी) कहते हैं कि "वीकावती रानी" के समान श्रीहरीदासजी का बान, भक्ति मे था ! सब ससार मे इन्होने यश लिया ।।