पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९२९

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श्रीभक्तमाल सटीक। Natur rent+ + + ++ + + ___ श्रीगोविन्ददासजी को, सब जगत् के जीवों का हित करनेवाले और सव शुभ गुणों में (सु-स्व) अपने समान जानकर श्री ६ नारा- यणदासजी (श्री १०८ नामास्वामीजी) ने स्वयं भक्तरत्नमाला दी, अर्थात् अर्थ तथा आख्यायिकायुक्त इस "भक्तमाल" को उन्हें पढ़ा दिया था। और श्रीगोविन्ददासजी ने संपूर्ण भक्तमाल को कण्ठस्थ कर रक्खा, बड़े मीठे स्वर से पढ़ा करते थे। ___ट निश्चय होता है कि यह छप्पय भक्तमाल पूर्ण हुये पीछे स्वयं श्रीकृपालु नाभास्वामीजी ही ने लिख दिया है । (यह छप्पय बड़े मनन कर रखने के योग्य है)। और “नारायणदास ने दिया ऐसा परोक्ष (अन्य पुरुष) नाम लिखा, सो अपना नाम परोक्ष से भी लिखने की कवियों की रीति प्रसिद्ध है ही। _ जो मूल १०२ कवित्त ४१० में श्रीगोविंदस्वामी वर्णित हैं, उनसे ये महात्मा भिन्न हैं। (२२५) श्रीपमणि जगतसिंहजी। (८१३) छप्पय । (३०) भक्तेश भक्त, भवतोषकर, संत नृपति “बासो” कुँवर ॥ श्रीयुत नृपमनि “जगतसिंह" दृढ़ भक्तिपरायन । परम प्रीति किये सुबस शील लक्ष्मीनारायन ॥ जासु सुजश सहजही कुटिल कलि कल्प जुघायक । आज्ञा अटल सुप्रगट, सुभट कटकनि सुखदायक ॥अति ही प्रचंड मारतंड सम, तम खंडन दोरदंड वर । भक्तेश भक्त, भव- तोषकर, संत नृपति “बासो" कुँवर ॥१६३॥ (२१) वात्तिक तिलक । भक्तों के स्वामी, श्रीभगवान के तोष प्रसन्नता करनेवाले, “संत