पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९४

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Antanumar mange+ MHAN-HIMAHAMA भक्तिसुधास्वाद तिलक । जलवीचि सम वास्तव में एक ही हैं। भक्तों के हेतु युगल मूर्ति से प्रकट हैं वस्तुतः जो यह हैं सो वह और जो वह हैं सो यह ॥ भगवत् आपही, श्रीलक्ष्मीरूप से,जगत् को उत्पन्न करके, संरक्षण पालन करि भुक्ति, मुक्ति, भक्ति, प्रभु मंत्र नेम प्रेम देके जीवों को श्रीप्रभु समीप निवासी करते हैं। इसीसे श्रीलक्ष्मीजी भक्तिमार्ग "श्रीसंप्रदाय” की परमाचार्य आदि भक्ति- रूपी श्रीहरिवल्लभा हैं। जितने वेद पुराण भागवत इतिहास और सद्ग्रन्थ हैं, सबके सब युगल सरकार की ही लीला यशचरित्र को तो वर्णन करते हुए "नेति नेति" पुकारते हैं । श्रीकृपा की जय जय जय ।। श्लो० या देवी सर्वभूतेषु भक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः ॥ (१५) श्रीपार्षद। भगवत् के प्रमुख पार्षद जो सोलह [१६] हैं श्रीनन्द प्रमुख, तिनका वर्णन पृष्ठ ७१ में कुछ हो ही चुका है, और इनकी कृपा अजामिल के प्रसङ्ग में भी विदित ही है । भक्तों के रक्षक हैं, इनकी कृपा कौन वर्णन कर सकता है । यहाँ श्रीनाभाजी स्वामी ने इनकी प्रार्थना "हरिवल्लभों" में भी पुनः की है ॥ रामउपासक शम्भुसम, काकभुशुंडी भक्त भल । पंचवर्ष बय बाल नित्य रघुनन्दन ध्यावत । मानसि सेवा मंत्र जपत रामायण गावत।। आयजन्म सुनि अवध विपुलब्रह्मानंदघूटे। कलवत्सल रसरसिक ललित लीला सुखलूटै ॥ भजन करत नितप्रेमतेजिवनमुक्तप्रभुप्रेमबल । रामउपासकशम्भसमकाकभुशुंडीभक्तभल।। (१६) श्रीगरुड़जी। श्रीहरिवल्लभ (श्रीगरुड़) जी भी भगवत्पषिद हैं, प्रभु के वाहन हैं "श्रीहनुमान गरुड़देव की जय" यह तो सबको प्रसिद्ध है ही। चौपाई। गरुड़ महाज्ञानी गुण रासी । हरि सेवक अति निकट निवासी ॥ __ श्राप अनेक भावरूप,अर्थात् दास, सखा,वाहन,प्रासन, ध्वजा, वितान, व्यजन होके श्रीप्रभु की सेवा करते हैं और सदा सम्मुख खड़े रहते हैं।