पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९५

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IMAGEM +HitM1444444 4nd i guddu+ + श्रीभक्तमाल सटीक । - "श्रीयामुनाचार्य स्वामीजी” ने तो श्रीगरुड़जी को वेदत्रयी रूप ही कहा है, जिनके पक्षों से “सामवेद उच्चारण होता है, सो प्रभु चढ़े हुए सप्रेम सुनते हैं। श्रीकाक "भुशुण्डि" जी से आपने "श्रीरामचरितमानस" जिस प्रेम से श्रवण किया उसका कहना ही क्या ॥ चौपाई। सुनि शुभ रामकथा खगनाहा । विगत मोह मन परम उछाहा॥ सुनि भुशुण्डि के वचन सुहाए । हरषित खगपति पंख फुलाए॥ नयन नीर मन अति हरषाना। श्रीरघुपति प्रताप उर भाना । पुनि पुनि काग चरण सिरुनावा। जानि राम सम प्रेम बढ़ावा ॥ दो० काग चरण सिर नाइ करि, प्रेम सहित मति धीर। गरुड़ गयउ वैकुण्ठ तय, हृदय राखि रघुवीर ॥ और इनका बल पराक्रम भक्तिचरित्र के वर्णन में तो महाभारत एक “सौपर्ण" पर्वका पर्व ही प्रसिद्ध है। श्रीवाल्मीकि युद्धकाण्ड में श्रीवैनतेयजी ने निज वल्लभता श्रीसीता- कान्तजी से स्वयं कही है कि "हे श्रीककुत्स्थकुलभूषणजी ! मैं आपका" सखा हूँ, परमप्रिय बाहर का विचरनेवाला आपके प्राण हूँ, यह नरनाट्या नागपासबंधनलीला सुनके निज सख्य सेवा निवेदन करने को आया हूँ। (१७) श्रीरामदूत हनुमानजी। चौपाई। पवनतनय वल पवन समाना । बुधि विवेक विज्ञाननिधाना ॥१॥ महावीर विनवौं हनुमाना । राम जासु यश प्रापु वखाना ॥ २ ॥ (३६) टीका । कवित्त । (८०७) रतन अपार सारसागर उधार किये लिये हितचायकै वनाइ मालाकरी है। सब सुख साजरघुनाथ महाराज जू को, भक्ति सों, विभीषणजू आनि भेंट धरी है। सभा ही की चाह अवगाह हनुमान गरे डारिदई सुधि भई, । मति अरवरी है । राम बिन काम कोन, फोरि मणि दीन्हें डारि, खोलि त्वचा नामही दिखायो, बुद्धि हरी है ॥ २७ ॥ (६०२)