पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९५३

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armagarma-AMMAmrituamratapraarth amaramananmantrimirarameterananda श्रीभक्तमाल सटीक देते । ऐसा समझ के मैंने यथा मति कथा सुनादी है ॥ ६३१ ॥ कवित्त । कीनी भक्तमाल सुरसाल नाभा स्वामी जू नै तरे जीव जाल जग जन मनजोहनी । भक्ति रस बोधनी सो टीका मति सोधनी है बाँचत कहत अर्थ लागे अति सोहनी ॥ जो पै प्रेम लक्षना की चाह अवगाहि याहि मिटै उरदाह नैकु नैननिहूँ जोहनी । टीका और मूल नाम भूल जात सुनै जब रसिक अनन्य मुख होत विश्वमोहनी ॥ ६३२॥ नाभा ज की अभिलाष पूरन लै कियौ मैं तौ ताकी साखी प्रथम सुनाई नीके गाइक । भक्ति बिस्वास जाके ताही को प्रकाश कीजै भीजै रंग हियो लीजे संतनि लड़ाइकै ॥ संवत प्रसिद्ध दस सात सत उन्हत्तर फालगुन ही मास वदी सप्तमी विताइकै। नारायणदास सुख रास भक्तमाल लै के प्रियादास दास उर बसौ रही छाइक ॥ ६३३॥ अगिनि जरावी लेके जल में बुड़ावों भावै सूली पें चढ़ावी घोरि गरल पिवायवी । बीछू कटवावी कोटि साँप लपटावी हाथी धागे डखावौ इति भीति उपजायवी ॥ सिंह पै खवावौ चाही भूमि गड़वावो तीखी अनी विधवावी मोहि दुख नहीं पायवी । ब्रजजन- पान कान्ह बात यह कान करौ भक्ति सो बिमुख ताको मुख न दिखायवी ॥ ६३४॥ इति "भक्तिरसबोधिनी" । टीका । वात्तिक तिलक । श्रीनामा स्वामीकृत सुन्दर रसाल भक्तमाल जो भक्तजनों के : मन चुभ जाती है, और जिसको कथन, श्रवण करके अनेक जीव । जगत् से तर जाते हैं, उसी श्रीभक्तमाल की यह "भक्तिरस ।

  • "ईति"-(श्लोक) "अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषकाशलभाशुकाः । स्वचक्र परचक्र च सप्तता इतय.

स्मृता. ॥१॥" अर्थात् अत्यन्त वर्षा का होना, वर्षा का नही होना, चूहो का उपद्रव, टिड्डियों का । उपद्रव और शुकादि चिड़ियाओं का उपद्रव, आपस का द्रोह, पराए किसी का अत्याचार, इन बातों को, स्मृतियाँ कहती है कि, "ईति" यही है ।।