पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९६४

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । - + - - - + - + - + + - + + + - (१) साधु शिरोमणि संतवर, हरिदासन के दास । पंडितवर "श्रीप्रेमनिधि", प्रियवर "मधुकर वास" ॥१॥ जानकिघाट प्रसिद्ध श्रीस्वामि विवेक प्रवीन । “रामवल्लभाशरणजी", शोभा नित्य नवीन ॥ २ ॥ भक्तमाल भागोत श्री, वाल्मीकि तुलसीक । संत समाज बखानहीं, होत पियूषहु फीक ॥ ३ ॥ (२) श्रीजानकिवर शरषजी, पंडित प्रेमागार। "सइस धार" लक्ष्मण किला, परम प्रसिद्ध उदार ॥ ४॥ (३) श्यामसुन्दरी शरणजी, रसिक संत अधिकारि। कनकभवन श्रीप्यारि प्रिय, चरण प्रेम अधिकारि ॥ ५॥ (४) हनुमतपद-पंकज मधुप, संत गोमतीदास ।। नेम प्रेम रत सर्वहित, शृंगारी तपरास ॥ ६ ॥ (५) स्वामी गंगादासजी, परमहंस शुचि शिष्ठ। (६) रामनरायनदासजी, पंडित संत सुनिष्ठ ॥७॥ (७) लक्ष्मण शरण सुसन्तवर, कामद कुंज निवासि । पूज्य वृद्ध विवेक निधि, प्रणतपाल तपरासि ॥ ८॥ सप्तऋषी श्रीअवध के, परम सुपूज्य महान । भक्त उदार सुनेम के, खानि सुसन्त सुजान ॥ ६ ॥ नम्रनिवेदन। जय श्रीजानकीवल्लभ करुणानिधिप्रियतम प्रभो,पाणनाथ, तुम्हारी जय । नमामि नमामि । तुम्हारी कृपासे इस "भक्ति-सुधा-स्वाद तिलकयुत श्रीभक्तमाल" को प्रथम श्रीकाशीजी में सन् १९०३ में तुम्हारी "प्रणयकलाजी" (बलदेवनारायणसिंह) ने छः जिल्दों में छपवाया, (और केवल पूर्वाद्धही को खड्गविलासप्रेस में भी)। इसकी दूसरी आवृत्ति १६१३ में लखनऊ नवलकिशोर यन्त्रालय से एक जिल्द में निकली।