पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९७

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श्रीभक्तमाल सटीक। निष्काम श्रीरामानुराग का उपदेश किस प्रकार हदीयौ । भला इनके ज्ञान वैराग्यादि दिव्य स्त्रों से पूर्ण विमल भतिजल से भरे हुए परम प्रेम- रूपी सिंधु की थाह किसको मिल सकती है ? और श्रीसीताराम सेवा में ऐसा अनूठा अनुराग किसका होगा कि अनेक रूप से सेवा सुख लेते हैं (१)"श्रीनिमिकुलकुमारी चारुशीलाजी” होके सखीसेवासुख अनु- भव करते हैं. (२) एवं "श्रीअंजनीनन्दन” रूप से दिव्य दम्पतीजी के दास्य सेवा का सुख लेते हैं । इस कपिरूप की प्रीति भक्ति सेवा तो लोक प्रसिद्ध है कि जिसके वश अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी श्रीजानकी- जीवनजी आप तो ऋणी कहाए और सेवाधर्मधुरंधर श्रीहनुमन्तजी को धनी बनाया ॥ चौपाई। "सुनु सुत तोहिं उरिन मैं नाहीं । देखेउँ करि विचार मन माहीं ॥ प्रति उपकार करौं का तोरा । सम्मुख होइन सकत मन मोरा ।। हनूमान सम नहिं बड़ भागी। नहिं कोउ रामचरण अनुरागी॥ गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई । बार बार प्रभु निज मुख गाई ॥" श्रीहनुमानजी के यश को बार-बार सुनते भी हैं। दो किमि बरनी हनुमन्त की, कायकान्ति कमनीय । रोम रोम जाके सदा, राम नाम रमनीय ॥ १॥ (विनय ) जाके गति है हनुमान की। ताकी पयज पूजि आई यह रेखा कुलिश पखानकी । अघटित घटन सुघट विघटन ऐसी विरुदावली नहीं आनकी। सुमिरत संकट सोच विमोचन मूरति मोद निधानकी ॥ तापर सानुकूल गिरिजा हर लखन राम श्रीजानकी । तुलसी कपि की कृपा विलोकनि खानि सकल कल्यान की। दो जय जय कपि श्रीराम प्रिय, धन्य धन्य हनुमन्त । नमो नमो श्रीमारुती, बलिहारी वलवन्त ॥५॥