पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९७८

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श्री भक्तगुण और लक्षण । श्रीश्यामनायिकाय नमः । श्रीहंसकलायै नमः । श्रीप्रेममनिधये नमोनमः ॥ श्रीभक्तगुण और लक्षण। श्रीहंसकलाशिष्य बाबू खेदनलाल लिखित । "सुनु मुनि सन्तन के गुण जेते । कहि न सकहिं शारद श्रुति तेते ॥" [१] भगवत् नाम, मन्त्र, जाप [२२] वैरी से वैर तजना [२] भगवत् पदकंजस्मरण [[२३] वैष्णव भक्तसन्त का संग [ ३] श्रीगुरुहरिपदपद्म में पराअनुरक्ति [२४] विराग और उदासीन वृत्ति [४] भागवतो (भक्तों ) की सेवा [२५] भगवत् भागवत चरणामृतपान [ ५] भगवत्धाम में निवास सादर-सप्रेम करना [ ६] श्रीअयोध्याजी में प्रेम [२६] श्रीमहाप्रसादसेवन [७] हरिलीलाकथाश्रवण [२७] शृंगार आदिक रसनिष्ठा [८] हरियशस्तुतिकीर्तन | [२८] जगत् को निज प्रभुमय देखना मन [९] भक्तों के यशकीर्तन क्रम बचन से [१०] श्रीरूप का ध्यान | [२९] भागवत धर्मों का मनन [११] सादर लीलादर्शन | [३०] भजन, कैकर्य, दास्य, सेवा [१२] सादर भक्तपदवन्दन [३१] भगवत् आस विश्वास , . [१३] ऊर्ध्वपुण्ड तिलक करना [३२] केवल एक भगवत् आस और भरोस [१४] कण्ठी धारण ( वैष्णववेष ) [३३] आत्मनिवेदन सर्व समर्पण [१५] माला (सुमिरिनी ) फेरनी [३४] जगज्जाल का समेटना [१६] भगवदायुध छाप धारण [३५] परनिन्दा, परदोष तजना [१७] प्रपत्तिशरणसूचक नाम | [३६] छल कपट कुटिलाई का त्याग [१८] प्रपन्नता ( शरणागति ) | [३७] सरलता, सुशीलता, सत्य व्यापार [१९] भागवत (भक्त) पदप्रेम से भूषित होना [२०] भगवत्विमुखों से दूर रहना [३८] मितभाषिता और मिष्ठभाषण, [२१] कुसमाज से अलग रहना मौन ( चुप)