पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९८८

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-- t + - - ment ++ - - - - -- - - tantrar समालोचना। पण्डित श्री ५ रामवल्लभाशरणजी। पण्डित श्री ५ गंगादासजी भक्तमाली। पण्डित श्री ५ रामनारायणदासजी। ( श्रीअयोध्याजी, १४ नवम्बर, १९०५ ) "भक्तिसूधास्वाद' नामक व्याख्यारूप संदर्भस्य काशीकान्यकुब्ज सभाया या सुष्ठतरा समालोचनाऽस्ति, तद्विषये श्रीपण्डित रामवल्लभाशरणस्य परमहंस गंगादासस्य श्रीपण्डित रामनारायणदासस्य च सम्मतिरस्ति ।।" श्रीकाशी "भारतजीवन" ( ८ अगस्त, १९०४) (५ मार्च, १९०६) "श्रीभक्तमाल" । टीका, तिलक सहित। 'श्रीसीतारामशरण भगवानप्रसाद विरचित । "छपाई सफाई बहुत अच्छी प्रशंसनीय है । विशेषता यह है कि पुस्तक शुद्धता- पूर्वक छपी है ।" "भक्तपुरुषों के अवश्य धारण करने के योग्य है । कथा उत्तम रूप से वणित है।" पण्डित श्रीगंगादासजी परमहंस । "छप्पय तथा कवित्त की शुद्धता पर विशेष ध्यान दिया हुआ है। चन्द्र-प्रभा प्रेस की उत्तमता का कहना ही क्या है। इस तिलक की सहायता से अब साधारणतः सवको सुभीता होगी, और प्रेमी जन तो अतिशय आनन्द प्राप्त करेंगे । जहाँ प्रवन्ध में बहुत गुण होते है, वहाँ दोष का होना भी अवश्य ही है । किन्तु, हितकारी तिलककार की सच्ची दीनता-प्रार्थना, उससे बढ़ी हुई है ।।" ( १५ मार्च, १९०६ )