पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९९१

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९७० श्रीभक्तमाल सटीक । "माधुरी" "व्याख्यान की भाषा सरल और मनोहारिणी है। प्रत्येक पढ़े-लिखे हिन्दी प्रेमियों को यह भक्तमाल मँगाकर अवश्य पढ़ना और लाभ उठाना चाहिए। जिन्हें अध्यात्मज्ञान प्राप्त करने के लिये बड़े बड़े ग्रन्थों के पढ़ने का अवकाश न मिलता हो, उनके लिये यह ग्रंथ अति लाभदायक है । कागज, छपाई-सफाई अति उत्तम । पृष्ठ-संख्या लगभग १०००, सजिल्द का मूल्य" १६) “खड्गविखास प्रेस से दो भागों में निकलने की बात थी, परन्तु एक ही भाग (मूल्य १)) उत्तम रूप से प्रकाश होकर रहगया कलियुग खण्ड नहीं छपा । कारण यह बताया गया कि प्रकाशक (बाबू बलदेव. नारायण सिंहजी) ने उसका अधिकार नवलकिशोर प्रेस को दे दिया। थस्तु ।" महेशप्रसाद (बी० ए०) 'मानस पीयूष'-"श्रीभक्तमाल और भक्तिरसबोधिनी की समालोचना की तो आवश्यकता ही नहीं। तिलक भक्तिसुधास्वाद' की प्रशंसा जो और महानुभाव कर चुके हैं उनको दुहराना श्रावश्यक नहीं। इस चौथी प्रावृत्ति में पाठक कुछ विशेषता (चरणचिह्न चित्रइत्यादि) स्वयं अनुभव करेंगे। तिलककार के जीतेजी २० वर्ष के बीचही में तीन संस्करण हो जाना ऐसे ग्रंथकी कम प्रशंसा नहीं है।