पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/१२

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ॐ श्रीपरमात्मने नमः नम्र निवेदन त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥ मूकं करोति वाचालं पङ्गु लङ्घयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं बन्दे परमानन्दमाधवम् ॥ परम आदरणीय जगद्गुरु श्रीश्रीआद्यशंकराचार्य भगवान्कृत विश्वविख्यात श्रीमद्भगवद्गीता- भाष्यको कौन नहीं जानता? आज यह भाष्य गीताके समस्त भाष्य और टीकाओं में मुकुटमणि माना जाता है, वेदान्तके पथिकोंके लिये तो यह परमोत्कृष्ट पथप्रदर्शक है, इसीलिये प्रायः सभी अद्वैतवादी टीकाकारोंने इसका सर्वथा अनुसरण किया है। आचार्यके कथनसे यह सिद्ध होता है कि उनके भाव्य-निर्माणके समय श्रीमद्भगवद्गीतापर अन्य बहुत-सी टीकाएँ प्रचलित थी, खेद है कि आज उनमेंसे एक भी उपलब्ध नहीं है। परन्तु आचार्य कहते हैं कि उनले अन्धका यथार्थ तत्त्व भलीभाँति समझ नहीं आता था, उसी यथार्थ तत्त्वको दिखलानेके लिये आचार्यको स्वतन्त्र भाष्य-रचना करनी पड़ी। इस भाष्यमें आचार्यने बड़ी ही बुद्धिमानीके साथ अपने मतकी स्थापना की है। स्थान स्थानपर शास्त्रार्थकी पद्धतिले विस्तृत विवेचन कर अर्थको सुस्पष्ट किया है। कुछ समयसे जगत्में श्रीमद्भगवद्गीताका प्रचार जोरसे बढ़ रहा है। सभी प्रकारके विद्वान् अपनी-अपनी दृष्टि से गीताका मनन कर रहे हैं, परन्तु गीताका मनन करनेके लिये आचार्यकृत भाष्यको समझनेकी बड़ी ही आवश्यकता है। इसीले अनेक विभिन्न भाषाओंमें भाष्यका अनुवाद भी हो चुका है। हिन्दी में भी दो-एक अनुवाद इससे पूर्व निकले थे, परन्तु कई कारणोंसे उनसे हिन्दी-जनता विशेष लाभ नहीं उठा सकी, इसीसे हिन्दी में एक ऐसे अनुवादके प्रकाशित होनेकी आवश्यकता प्रतीत होने लगी, जिससे गीताप्रेमी हिन्दी भाषी पाठक सुगमतासे आचार्यका मत जान सकें। मेरे पूजनीय ज्येष्टभ्राता श्रीजयदयालजी गोयन्दकाने, जिनके अनवरत संग और सदुपदेशों- से मेरी इस ओर किञ्चित् प्रवृत्ति हुई और होती है, मुझे भाष्यका अनुवाद करनेकी आशादी, पहले तो अपनी विद्या-बुद्धिकी ओर देखकर मेरा साहस नहीं हुआ, परन्तु उनकी कृपाभरी प्रेरणाने अन्तमें मुझे इस कार्य में प्रवृत्त कर ही दिया। गत सं० १९८४ के मार्गशीर्ष-मासमें मैंने व्यापारके कामसे प्रतिदिन कुछ समय निकालकर अनुवाद करना आरम्भ किया और माधके अन्ततक सतरहवें अध्यायतकका अनुवाद लिख गया। इसके पश्चात् अनेक बार ग्रन्थके प्रकाशित करनेकी बात उठी परन्तु अपनी अल्पज्ञताके कारण किसी