पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/१५४

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श्रीमद्भगवद्गीता एकस्य अपि सम्यग् अनुष्ठानात् कथम् एकका भी भली प्रकार अनुष्ठान कर लेनेसे दोनों- उभयोः फलं विन्दते, इति उच्यते---- का फल कैसे पा लेता है ? इसपर कहा जाता है- यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते । एक सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति ॥ ५॥ यत् सांख्यैः ज्ञाननिष्ठैः संन्यासिभिः सांख्ययोगियोंद्वारा अर्थात् ज्ञाननिष्ठायुक्त संन्यासियोंद्वारा जो मोक्षनामक स्थान प्राप्त किया जाता प्राप्यते स्थानं मोक्षाख्यं तद् योगैः अपि । है वही कर्मयोगियोंद्वारा भी (ग्राप्त किया जाता है)। ज्ञानप्राप्त्युपायत्वेन ईश्वरे समN कर्माणि पुरुष अपने लिये (कोका) फल न चाहकर आत्मनः फलम् अनभिसंधाय अनुतिष्ठन्ति ये सब कर्म ईश्वरमें अर्पण करके और उसे ज्ञानप्राप्तिका ते योगिनः तैः अपि परमार्थज्ञानसंन्यासप्राप्ति- उनको भी परमार्थ-ज्ञानरूप संन्यासप्राप्तिके द्वारा उपाय मानकर उनका अनुष्ठान करते हैं वे योगी हैं, द्वारेण गम्यते इति अभिप्रायः (वही मोक्षरूप फल ) मिलता है। यह अभिप्राय है। अत एक सांख्यं योगं च यः पश्यति फलै- इसलिये फलमें एकता होने के कारण जो सांख्य और योगको एक देखता है वहीं यथार्थ कत्वात् स सम्यक् पश्यति इत्यर्थः ॥५॥ देखता है ॥५॥ एवं तर्हि योगात् संन्यास एव विशिष्यते, पू०-यदि ऐसा है तब तो कर्मयोगसे कर्मसंन्यास कथं तर्हि इदम् उक्तम् 'तयोस्तु कर्मसंन्यासात् ही श्रेष्ठ है, फिर यह कैसे कहा कि 'उन दोनों में कर्मयोगो विशिष्यते' इति । कर्मसंन्यासकी अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है ? शृणु तत्र कारणम् । त्वया पृष्टं केवलं उ०-उसमें जो कारण है सो सुनो, तुमने कर्मसंन्यासं कर्मयोगं च अभिप्रेत्य तयोः केवल कर्मसंन्यास और केवल कर्मयोगके अभिप्रायसे पूछा था कि उन दोनोंमें कौन-सा एक कल्याण- अन्यतरः का श्रेयान् । तदनुरूपं प्रतिवचनं कारक है ? उसीके अनुरूप मैंने यह उत्तर दिया मया उक्त कर्मसंन्यासात् कर्मयोगो विशिष्यते कि ज्ञानरहित कर्म-संन्यासकी अपेक्षा तो कर्मयोग इति ज्ञानम् अनपेक्ष्य । ही श्रेष्ठ है। ज्ञानापेक्षा तु संन्यासः सांख्यम् इति मया क्योंकि ज्ञानसहित संन्यासको तो मैं सांख्य मानता अभिप्रेतः । परमार्थयोगः च स एव । हूँ और वही परमार्थयोग भी है। या तु कर्मयोगो वैदिकः स तादाद् जो वैदिक (निष्काम) कर्मयोग है वह तो योगः संन्यास इति च उपचर्यते । कथं उसी ज्ञानयोगका साधन होनेके कारण गौणरूपसे योग और संन्यास कहा जाने लगा है। वह तादर्थ्यम्, इति उच्यते- उसीका साधन कैसे है ? सो कहते हैं-