पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२२४

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श्रीमद्भगवद्गीता ब्रह्मलोकसहिता लोकार करसात पुनरावर्तिनः, कालपरिच्छिन्नत्वात् , कथम्-- ब्रह्मलोकसहित समस्त लोक पुनरावर्ती किस कारणसे हैं ? कालसे परिच्छिन्न हैं इसलिये; कालसे परिच्छिन्न कैसे हैं ?--- सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यडह्मणो विदुः। रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः ॥ १७ ॥ सहस्रयुगपर्यन्तं सहस्रं युगानि पर्यन्तः पर्यव- ब्रह्मा-प्रजापति अर्थात् विराटके एक दिनको,एक सानं यस्य अतः तद् अहः सहस्रयुगपर्यन्तं ब्रह्मणः | सहस्रयुगकी अवधिवाला अर्थात् जिसका एक सहस्र- प्रजापतेः विराजो विदुः। | युगमें अन्त हो, ऐसा समझते हैं। रात्रिम् अपि युगसहस्रान्ताम् अहःपरिमाणाम् तथा ब्रह्माकी रात्रिको भी सहस्रयुगकी अवधिवाली अर्थात् दिनके बराबर ही समझते हैं । के विदुः इति आह-- ऐसा कौन समझते हैं ? सो कहते हैं---- ते अहोरात्रविदः कालसंख्याविदोजना इत्यर्थः। वे दिन और रातके तत्त्वको जाननेवाले, अर्थात् यत एवं कालपरिच्छिन्नाः ते अतः पुनरा- | कालके परिमाणको जाननेवाले योगिजन ऐसा वर्तिनो लोकाः ॥१७॥ जानते हैं । इस प्रकार कालसे परिच्छिन्न होने के कारण वे सभी लोक पुनरावृत्तिवाले हैं ॥ १७॥ एवं। प्रजापतेः अहनि यद् भवति रात्रौ च तद् प्रजापति के दिनमें और रात्रिमें जो कुछ होता उच्यते-- । है उसका वर्णन किया जाता है- अव्यक्ताद्वयक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे । रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ॥ १८ ॥ अव्यक्ताद् अध्यक्तं प्रजापतेः स्वापावस्था दिनके आरम्भकालका नाम 'अहरागम' है, ब्रह्मा- तसाद् अव्यक्ताद् व्यक्तयो व्यज्यन्ते इति के दिनके आरम्भकालमें अर्थात् ब्रह्माके प्रबोधकालमें अव्यक्तसे-----प्रजापतिको निद्रावस्थासे व्यक्तयः स्थावरजङ्गमलक्षणाः सर्वाः प्रजाः व्यक्तियाँ–स्थावर-जङ्गमरूप समस्त प्रजाएँ उत्पन्न प्रभवन्ति अभिव्यज्यन्ते, अब आगमः अहरागमः होती हैं-प्रकट होती हैं। जो व्यक्त-प्रकट होती तसिन् अहरागमे काले ब्रह्मणः प्रबोधकाले । है, उसका नाम व्यक्ति है। तथा रात्र्यागमे ब्रह्मणः स्वापकाले प्रलीयन्ते तथा रात्रिके आनेपर----ब्रह्माके शयन करनेके सर्वा व्यक्तयः तत्र एव पूर्वोक्त अव्यक्त- समय उस पूर्वोक्त अव्यक्त नामक प्रजापतिकी संज्ञके ॥१८॥ निद्रावस्थामें ही समस्त प्राणी लीन हो जाते हैं ॥१८॥ समस्त