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शांकरभाष्य अध्याय ८ २०७

तव सौलभ्येन किं स्यात्, इति उच्यते आपके सुलभ हो जानेसे क्या होगा? इसपर कहते शृणु तद् मम सौलभ्येन यद् भवति- हैं कि मेरी सुलभ प्राप्तिसे जो होता है, वह सुन-~- मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् । नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धि परमां गताः ॥ १५ ॥ माम् उपेत्य माम् ईश्वरम् उपेत्य मझावम् मुझ ईश्वरको पाकर अर्थात् मेरे भावको प्राप्त करके आपाद्य पुनर्जन्म पुनरुत्पत्ति न प्राप्नुवन्ति । फिर ( वे महापुरुष ) पुनर्जन्मको नहीं पाते । किंविशिष्टं पुनर्जन्म न प्राप्नुवन्ति इति किस प्रकारके पुनर्जन्मको नहीं पाते, यह स्पष्ट तद्विशेषणम् आह- करनेके लिये उसके विशेषण बतलाते हैं- दुःखालयं दुःखानाम् आध्यात्मिकादीनाम् । आध्यात्मिक आदि तीनों प्रकारके दुःखोंका जो आलयम् आश्रयम् आलीयन्ते यसिन् दुःखानि स्थान--आधार है अर्थात् समस्त दुःख जिसमें रहते इति दुःखालयं जन्म | न केवलं दुःखालयम् हैं; केवल दुःखोंका स्थान ही नहीं जो अशाश्वत भी अशाश्वतम् अनवस्थितरूपं च न आप्नुवन्ति है अर्थात् जिसका स्वरूप स्थिर नहीं है। ऐसे ईदृशं पुनर्जन्म महात्मानो यतयः संसिद्धिं पुनर्जन्मको, मोक्षरूप परम श्रेष्ट सिद्धिको प्राप्त हुए मोक्षाख्यां परमां प्रकृष्टां गताः प्राप्ताः । ये पुनः ' महात्मा-संन्यासीगण नहीं पाते । परन्तु जो मुझे मां न प्राप्नुवन्ति ते पुनः आवर्तन्ते ॥१५॥ प्राप्त नहीं होते वे फिर संसारमें आते हैं ॥१५॥ ।

किं पुनः त्वत्तः अन्यत् प्राप्ताः पुनः आवर्तन्ते तो क्या आपके सिवा अन्य स्थानको प्राप्त इति उच्यते- होनेवाले पुरुष फिर संसारमें आते हैं ? इसपर कहा जाता है-- आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन । मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥ १६ ॥ आब्रह्मभुवनाद् भवन्ति यसिन् भूतानि जिसमें प्राणी उत्पन्न होते और निवास करते हैं इति भुवनं ब्रह्मभुवनं ब्रह्मलोक इत्यर्थः । उसका नाम भुवन है ,ब्रह्मलोक ब्रह्मभुवन कहलाता है। आब्रह्मभुवनात् सह ब्रह्मभुवनेन लोकाः सर्वे हे अर्जुन ! ब्रह्मलोकपर्यन्त अर्थात् ब्रह्मलोकसहित पुनरावर्तिनः पुनरावर्तनस्वभावा हे अर्जुन । समस्त लोक पुनरावर्ती हैं अर्थात् जिनमें जाकर फिर संसारमें जन्म लेना पड़े, ऐसे हैं। परन्तु हे कुन्तीपुत्र ! माम् एकम् उपेत्यतु कौन्तेय पुनर्जन्म पुनरुत्पत्तिः केवल एक मुझे प्राप्त होनेपर फिर पुनर्जन्म- न विद्यते ॥१६॥ पुनरुत्पत्ति नहीं होती ॥ १६ ॥ ।