पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३३९

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RIWA power MALHOOT SECORNERamngeme WMAvinayak Firing ............." शांकरभाष्य अध्याय १३ ३२३ कारणं गुणसङ्गः । सत्या च असत्यः च योनयः सदसधोनयः अच्छी और बुरी योनियों का नाम सदसत् योनि तासु सदसघोनिषु जन्मानि सदसद्योनि- है, उनमें जन्मोंका होना लदलद्योनिजन्म है, जन्मानि तेषु सदसघोनिजन्मसु विषयभूतेष्टु इन भोग्यरूप सदसद्योनि-जन्मोंका कारण गुणोंका संग ही है। अथवा सदसबोनिजन्मनु अस्त्र संसारस्य अथवा संसार-पदका अध्याहार करके यह अर्थ कर लेना चाहिये कि अच्छी और बुरी कारणं गुणसङ्ग इति संसारपदम् अध्याहार्यम् । योनियों में जन्म लेकर गुणोंका संग रना ही इस संसारका कारण है। सद्योगयो देवादियोनयः असयोनया देवादि योनियाँ सत् योनि हैं और पशु आदि पश्वादियोनयः । सामर्थ्याद सदसयोनयो योनियाँ असत् योनि हैं। प्रकरणकी सामर्थ्यसे मनुष्य-योनियों को भी सत्-असत् योनियाँ मानमें मनुष्ययोनयः अपि अविरूद्धा द्रष्टव्याः । किसी प्रकारका विरोध नहीं समझना चाहिये । एतद् उक्तं भवति प्रकृतिस्थत्वाख्या अविना कहनेका तात्पर्य यह है कि प्रकृतिमें स्थित गुणेषु च सङ्गः कामः संसारस्य कारणम् इति। ये ही दोनों संसारके कारण हैं, और वे छोड़ने के होनारूप अविद्या और गुणोंका संग--आसक्ति तह च परिवर्जनाय उच्यते । लिये ही बतलाये गये हैं। अस्य चनिवृत्तिकारणं ज्ञानवैराग्ये ससंन्यासे गीताशास्त्रमें इनकी निवृत्ति के साधन संन्यासके गीताशास्त्रे प्रसिद्धम् । सहित ज्ञान और वैराग्य प्रसिद्ध हैं। तत् च ज्ञानं पुरस्ताद् उपन्यस्तं क्षेत्रक्षेत्रज्ञ- वह क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विषयक ज्ञान पहले बतलाया ही विषयम् ! 'बज्ज्ञात्वामृतमश्नुते' इति उक्तं च अन्यों (धर्मो) का निषेध करके और ('सर्वतःपाणि- गया है साथ ही ('न सत्तन्नासदुच्यते' इत्यादि कथनसे) पादम्' इत्यादि कथनसे) अनात्म-धर्मोका अध्यारोप अन्यापोहेन अतद्भर्माच्यारोपेण च ॥२१॥ करके ज्ञेयके स्वरूपका भी यज्ञात्वामृतमश्नुते' आदि वचनोंसे प्रतिपादन किया गया है ॥२१॥

तस्य एव पुनः साक्षाद् निर्देशः क्रियते-- उसीका फिर साक्षात् निर्देश किया जाता है- उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः । परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः ॥ २२ ॥ उपद्रष्टा समीपस्थः सन् द्रष्टा स्वयम् अव्याप्तो (यह आत्मा) उपद्रष्टा है अर्थात् स्वयं क्रिया न करता हुआ पासमें स्थित होकर देखनेवाला यथा ऋविग्यजमानेषु यज्ञकर्मव्याप्तेषु है । जैसे कोई यज्ञविद्यामें कुशल अन्य पुरुष स्वयं तटस्थः अन्यः अव्याहतो यज्ञविद्याकुशल- : यज्ञ न करता हुआ, यज्ञकर्ममें लगे हुए पुरोहित