पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३४१

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23:29 3... 108 पुराना BARBAR...RERNARENOWrey FRames, mariter: शांकरभाष्य अध्याय १३ ३२५ महेश्वरः सर्वात्मत्वात् स्वतन्त्रत्वात् च आत्मा महेश्वर है । वह सबका आत्मा होनेके कारण और स्वतन्त्र होने के कारण महान् ईश्वर है, महान् ईश्वरः च इति महेश्वरः। इसलिये महेश्वर है। परमात्मा देहादीनां बुद्धयन्तानां प्रत्यगात्म- वह परमात्मा है । अविद्याद्वारा प्रत्यक रूप माने हुए जो शरीरसे लेकर बुद्धिपर्यन्त स्वेन कल्पितानाम् अविद्यया परम उपद्रष्ट- (आत्मशब्दवाच्य पदार्थ ) हैं । उन सबसे उपद्रष्टा आदि लक्षणोंवाला आत्मा परम । श्रेष्ट ) है-इस- स्वादिलक्षण आत्मा इति परमात्मा । लिये वह परमात्मा है।

  • सोऽन्तः परमात्मा' इति अनेन शब्देन च श्रुतिमें भी 'बह भीतर व्यापक परमात्मा है'

अपि उक्तः कथितः श्रुतौ। इन शब्दों से उनका वर्णन किया गया है। क असौ, अस्मिन् देहे पुरुषः परः अव्यक्तात् । ऐसा आत्मा कहाँ है ? वह अव्यक्तसे पर पुरुष इसी शरीरमें है जो कि 'उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः' इति यो परमात्मेत्युदाहृतः' इस प्रकार आगे कहा जायगा वक्ष्यमाणः 'क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि' इति और जो क्षेत्रमं चापि मां विद्धि' इस प्रकार पहले उपन्यस्तो व्याख्याय उपसंहृतः च ॥ २२ ॥ कहा जा चुका है तथा जिसकी व्याख्या करके उपसंहार किया गया है !! २२ ॥ तम् एवं यथोक्तलक्षणम् आत्मानम्- इस प्रकार उस उपर्युक्त लक्षणोंसे युक्त आत्माको- य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह । सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥ २३ ॥ य एवं यथोक्तप्रकारेण वेत्ति पुरुष साक्षाद् उस पुरुषको जो मनुष्य उपर्युक्त प्रकारसे अहम् इति प्रकृतिं च यथोक्ताम् अविद्यालक्षणां ' अर्थात् साक्षात् आत्मभावसे कि 'यही मैं हूँ इस प्रकार जानता है और उपर्युक्त अविद्यारूप प्रकृति- गुणैः स्वविकारैः सह निवर्तिताम् अभावम् को भी, अपने विकाररूप गुणोंके सहित, विद्याद्वारा आपादितां विद्यया। निवृत्त की हुई-अभावको प्राप्त की हुई जानता है, सर्वथा सर्वप्रकारेण वर्तमानः अपि स भूयः यह सब प्रकारसे बर्तता हुआ भी, इस विद्वत्- पुनः पतिते अस्मिन् विद्वच्छरीरे देहान्तराय शरीरके नाश होनेपर फिर दूसरे शरीरमें जन्म न अभिजायते न उत्पद्यते देहान्तरं न गृह्णाति नहीं लेता अर्थात् दूसरे शरीरको ग्रहण नहीं इत्यर्थः । करता।