पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४५

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शांकरभाष्य अध्याय २ P P

। न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वाऽभविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥ २० ॥ न जायते न उत्पद्यते जनिलक्ष्णा वस्तु- यह आत्मा उत्पन्न नहीं होता अर्थात् उत्पत्तिरूप विक्रिया न आत्मनो विद्यते इत्यर्थः । न म्रियते वस्तुविकार आत्मामें नहीं होता और यह मरता भी वा । वाशब्दः चार्थे । नहीं । 'वा' शब्द यहाँ 'च' के अर्थ में है। न म्रियते च इति अन्त्या विनाशलक्षणा 'मरता भी नहीं इस कथनसे विनाशरूप अन्तिम विक्रिया प्रतिषिध्यते । विचारका प्रतिषेध किया जाता है। कदाचित् शब्दः, सर्वविक्रियाप्रतिषेधैः 'कदाचित्' शब्द सभी विकारोंके प्रतिषेधके संबध्यते न कदाचित् जायते, न कदाचित् | साथ सम्बन्ध रखता है अर्थात् यह आत्मा न नियते, इति एवम् । कभी जन्मता है, न कभी मरता है । यस्मात् अयम् आत्मा भूत्वा भवनक्रियाम् जिससे कि यह आत्मा उत्पन्न होकर अर्थात् उत्पत्तिरूप विकारका अनुभव करके फिर अभावको अनुभूय पश्चात् अभविता अभावं गन्ता न भूयः प्राप्त होनेवाला नहीं है इसलिये मरता नहीं, क्योंकि पुनः तस्मात् न म्रियते । यो हि भूत्वा न जो उत्पन्न होकर फिर नहीं रहता वह 'मरता है' भविता स म्रियते इति उच्यते लोके । इस प्रकार लोक में कहा जाता है। वाशब्दात नशब्दात् च अयम् आत्मा 'या' शब्दसे और 'न' शब्दसे यह भी पाया जाता है कि यह आत्मा शरीरकी भाँति पहले न होकर फिर अभूत्वा भविता वा देहवस् न भूयः पुनः तस्मात् होनेवाला नहीं है इसलिये यह जन्मता नहीं, क्योंकि न जायते । यो हि अभूत्वा भविता स जायते जो न होकर फिर होता है वही 'जन्मता है' यह कहा इति उच्यते, न एवम् आत्मा अतो. न जायते । जाता है । आत्मा ऐसा नहीं है, इसलिये नहीं जन्मता। यसात् एवं तस्मात् अजः, यस्मात् न प्रियते ऐसा होनेके कारण आत्मा अज है और मरता तस्मात् नित्यः च। नहीं, इसलिये नित्य है। यद्यपि आद्यन्तयोः विक्रिययोः प्रतिषेधे यद्यपि आदि और अन्तके दो विकारों के प्रतिषेधसे ( बीचके ) सभी विकारोंका प्रतिषेध हो जाता है, तो सर्वा विक्रियाः प्रतिषिद्धा भवन्ति, तथापि भी बीच में होनेवाले विकारोंका भी उन-उन विकारोंके मध्यभाविनीनां विक्रियाणां स्वशब्दः एच | प्रतिषेधार्थक खास-खास शब्दोंद्वारा प्रतिषेध तदथैः प्रतिषेधः कर्तव्य इति अनुक्तानाम् अपि करना उचित है । इसलिये ऊपर न कहे हुए जो यौवनादि सब विकार हैं उनका भी जिस प्रकार यौवनादिसमस्तबिक्रियाणां प्रतिषेधो यथा स्यात् प्रतिषेध हो, ऐसे भावको 'शाश्वत' इत्यादि शब्दोंसे इति आह 'शाश्वत' इत्यादिना । कहते हैं- ।