पृष्ठ:संकलन.djvu/१५५

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इस पर क़ानून का बनाया जाना व्यर्थ हुआ देख सरकार ने यह निश्चय किया कि यदि हिन्दुस्तानी इच्छानुसार अपने नामों की रजिस्टरी करा लें तो यह क़ानून जारी न किया जायगा। पर हिन्दुस्तानियों ने निष्क्रिय-प्रतिरोध बन्द न किया। सरकार और भी चिढ़ गई। उसने एमिग्रेशन एक्ट नाम का एक और क़ानून जारी कर दिया। इसके कारण शिक्षित भारतवासियों का ट्रांसवाल में घुसना असम्भव सा हो गया।

तब वे लोग इच्छानुसार रजिष्टरी करा लेने पर राज़ी हो गये। सुनते हैं, उनसे गवर्नमेंट ने कहा कि रजिष्टरी करा लो; क़ानून मंसूख़ हो जायगा। पर रजिष्टरी हो चुकने पर भी क़ानून ज्यों का त्यों रहा। इस पूर हिन्दुस्तानियों ने और भी दृढ़ता के साथ निष्क्रिय-प्रतिरोध करना आरम्भ किया।

नेटाल के हिन्दुस्तानी भी ट्रांसवालवाले अपने भाइयों से आकर मिल गये। फिर एक भारी सभा हुई। सभा में क़ानून न मानने की प्रतिज्ञा हुई। उधर सरकार ने भी हिन्दुस्तानी नेताओं को देश से निकाल देने का विचार पक्का किया। फल यह हुआ कि सैकड़ों हिन्दुस्तानी ट्रांसवाल से हिन्दुस्तान को भेज दिये गये। क़ानून न माननेवाले सैकड़ों आदमी जेलों में ठूस दिये गये। स्थिति बड़ी भयङ्कर हो गई। हिन्दुस्तानी अपनी प्रतिज्ञा पर और भी दृढ़ हो गये। स्त्रियाँ तक जेल जाना अपना कर्तव्य समझने लगीं। अपने पतियों और भाइयों को वे निष्क्रिय-प्रतिरोध जारी रखने के लिए उत्साह दिलाने लगीं।

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