पृष्ठ:संकलन.djvu/५०

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जज कौन है कि निन्दा व्यर्थ है या अव्यर्थ ? जिसकी निन्दा की जाय, वह ? यदि यही न्याय है तो जितने मुजरिम हैं, उन सब की ज़बान ही को सेशन कोर्ट समझना चाहिए। इतना ही क्यों, उस दशा में यह भी मान लेना चाहिए कि हाई कोर्ट और प्रिवी कौंसिल के जजों का काम भी मुजरिमों की ज़बान ही के सिपुर्द है। कौन ऐसा मुजरिम होगा जो अपने ही मुँह से अपने को दोषी क़बूल करेगा ? कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो अपनी निन्दा को सुनकर खुशी से इस बात को मान लेगा कि मेरी उचित निन्दा हुई है ? जो इतने साधु, इतने सत्यशील, इतने सच्चरित्र होते हैं कि अपनी यथार्थ निन्दा को निन्दा और दोष को दोष कबूल करते नहीं हिचकते, उनकी कभी निन्दा ही नहीं होती। उन पर कभी किसी तरह का जुर्म ही नहीं लगाया जाता। अतएव जो कहते हैं कि हम अपनी व्यर्थ निन्दा मात्र को रोकना चाहते हैं, वे मानों इस बात की घोषणा करते हैं कि हमारी बुद्धि ठिकाने नहीं; हम व्यर्थ प्रलाप कर रहे हैं, हम अपनी अज्ञानता को सबके सामने रख रहे हैं। जो समझदार हैं, वे अपनी निन्दा को प्रकाशित होने देते हैं; और जब निन्दा प्रकाशित हो जाती है तब, उपेक्ष्य होने के कारण, या तो उसे उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं, या वे इस बात को सप्रमाण सिद्ध करते हैं कि उनकी जो निन्दा हुई है, वह व्यर्थ है। अपने पक्ष का जब वे समर्थन कर चुकते हैं, तब सर्व-साधारण जज का काम करते हैं। दोनों पक्षों की दलीलों

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