एक प्रकार की पीली जमीन में, गड़े हुए हीरे मिलते हैं। पर
उस जमीन की बनावट से यह मालूम होता है कि जो हीरे
वहाँ निकलते हैं, वे वहीं नहीं बने। वे उससे भी बहुत दूर नीचे
बने थे। वहाँ से ज्वालागर्भ पर्वतों के स्फोट के समय वे ऊपर
फेंक दिये गये हैं। विषम ज्वाला और अतिशय दबाव के कारण,
वहीं, उतनी गहराई में, कोयले के साथ और और चीजों का
रासायनिक संयोग होने से वे उत्पन्न हुए होंगे। प्रीमियर खान
के पास जो ज्वाला-वमन हुआ होगा, उसका वेग बहुत ही
प्रचण्ड रहा होगा। वेग ही की प्रचण्डता के कारण, जो हीरा
निकला है, उसकी शिला के टुकड़े टुकड़े हो गये होंगे।
इस रत्न-शिला का जो टुकड़ा निकला है, वह छोटा नहीं है। वह बहुत बड़ा है। खान के मालिक उसकी प्राप्ति से बेहद खुश हैं। यह इस तरह की खुशी है कि इसने उनको अन्देशे में नहीं, खतरे तक में डाल दिया है। उनको यह विशाल हीरक-रत्न बोझ सा मालूम हों रहा है। कोई मामूली आदमी तो उसे ख़रीद ही नहीं सकता। यदि कोई खरीदेगा तो राजा या राज- राजेश्वर। परन्तु राजेश्वरों को भी इसकी कीमत देते खलेगा। इस हीरे की कीमत नियत करना केवल एक काल्पनिक बात है; सिर्फ एक खयाली अन्दाजा है। १७५० से १८७० ईसवी तक हीरे का दाम उसके वजन के वर्ग-मूल के हिसाब से लगाया जाता था । दूसरे देशों में हीरे की तौल कैरेट से होती है। एक कैरट में चार ग्रेन होते हैं और एक माशे में कोई १५ ग्रेन।
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