पृष्ठ:संकलन.djvu/८०

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आ सकती जैसी निर्धन अथवा निर्लोभी को आती है। धनवान् को निर्धन की अपेक्षा भय भी अधिक रहता है। यदि मनुष्य लोभी है तो थोड़ी सम्पत्तिवाले से हम अधिक सम्पत्तिवाले ही को दरिद्री कहेंगे। क्योंकि जिसे ५ रुपये की आवश्यकता है, वह उतना दरिद्री नहीं, जितना ५०० रुपये की आवश्यकतावाला है। कहाँ ५ और कहाँ ५००! सधनता और निर्धनता मन की बात है। जिनका मन उदार है, वे अनुदार और लोभी मनुष्यों की अपेक्षा अधिक धनवान् हैं। क्योंकि उदारता के कारण उनका धन किसी के काम तो आता है -- चाहे वह बहुत ही थोड़ा क्यों न हो। बहुत धन होकर भी यदि मनुष्य लोभी हुआ और उसका धन किसी के काम न आया तो उसका होना न होना दोनों बराबर हैं। शेख सादी ने बहुत ठीक कहा है --

तवङ्गरी बदिलस्त न बमाल।

अर्थात् अमीरी दिल से होती है, माल से नहीं।

[अप्रैल १९०८.
 


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