सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

SAMnanी gang विविध श्रीफल सिद्धि मनो फल्यो। सकल साधन सिद्धिहि लै चल्यो ॥१९।। दो०] राम चलत सब पुर चल्यो, जहँ तहँ सहित उछाह ।। मनौ भगीरथ-पथ चल्यो, भागीरथी-प्रवाह ॥२०॥ [चचला छद] रामचद्र धाम ते चले सुने जबै नृपाल । बात को कहै सुनै, सो है गये महा विहाल ।। ब्रह्मरध्र फोरि जीव यौं मिल्यो धुलोक जाइ । गेह' चूरि ज्यौं चकोर चद्र मै मिलै उडाइ ॥२१॥ [चचरी छ द] कौन हो, कित ते चले, कित जात हो, केहि काम जू । कौन की दुहिता, बहू, कहि कौन की यह वाम जू ।। एक गाँउँ रहौ कि साजन मित्र बधु बखानिए । देश के, परदेश के, किधौं पथ की पहिचानिए ॥२२॥ [जगमोहन दुडक] किधौं यह राजपुत्री, वरही वरयो है किधौं, उपदि वरयो है यहि सोभा अभिरत हो । युका किधौं रति रतिनाथ जस सार्थ केसौदास जात तपोवन सिव. वैर सुमिरत हो। (१) गेह = पिंजडा। (२) उपदि = गुरुजन की इच्छा के विरुद्ध मारानी च्ला से।