पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/११

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इस साहित्य-ज्ञान को उन्होंने केवल कुछ ग्रथों मे ही अथित, नहीं किया बल्कि एकाध सुयोग्य शिष्यो मे भी सचरित किया । इद्रजीतसिह की रखेली वेश्या प्रवीणराय का उनकी शिष्या होना प्रसिद्ध ही है। प्रवीणराय अत्यत सहृदय कवयित्री थी और वेश्या होने पर भी पतिव्रता थी। 'रमा कि राय प्रवीन' कह- कर केशवदास ने उसकी लक्ष्मी से तुलना की है। इद्रजीत- सिंह के जुर्माने की माफी की शर्त के तौर पर जब एक बार अक- बर ने उसे दरबार मे बुलाया था तो उसने अपनी कवित्व-शक्ति से अकबर को केवल रिझाया ही नहीं, अपने पातिव्रत की भी रक्षा की। ऊँचे है सुर बस किये, सम है नर बस कीन, अब पताल बस करन को ढरकि पयाना कीन ।' की फुही से अक- बर झूम उठा और 'जूठी पतरी भखत हैं, वायस बारी स्वान' की चोट उसे सीधे रास्ते पर ले आई। स्वय केशव प्रवीणराय की कवित्वशक्ति के कायल थे। कहते हैं कि राम-विवाह के अवसर के लिये उनसे अच्छी गाली न बन पडी तो उन्होंने उसे प्रवीणराय से लिखवाया । ___ परतु हिंदी के प्रसिद्ध शृगारी कवि बिहारी भी केशव के शिष्य थे, इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं। ओडछे के पास गुढौ ग्राम में टट्टी सप्रदाय के नरहरिदासजी रहते थे जिनके यहाँ केशवदासजी आया-जाया करते थे। बिहारी के पिता केशवराय उनके शिष्य थे। पत्नी के मर जाने पर विरक्त होकर केशवराय भी ग्वालियर छोडकर ओडछे चले आए